यह कृति स्वतंत्रता पूर्व देश के इतिहास, समाज और संस्कृति का दर्पण है। सच एवं किंचित कल्पना से गूंथी गई इस कथा में याद दिलाया गया है कि अगर आज हम स्वतंत्र हैं तो कुमारन नायर जैसे लाखों अनाम लोगों के त्याग और समर्पण के कारण…

– ब्रजबिहारी

स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों के बारे में विपुल साहित्य उपलब्ध है, लेकिन उन्हें वैसा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अनाम लोगों की अधिकतर कहानियां उपेक्षित और अनसुनी ही रह गई हैं। इस दृष्टि से विजय बालन की पुस्तक `द स्वराज स्पाइ` एक महत्वपूर्ण कृति के रूप में सामने आई है। यदि कहा जाए कि ऐसे ही अनेक व्यक्तित्वों की ऊर्जा को शक्ति पुंज बनाकर ही स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी गई और जीती गई तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सच के मनकों को कल्पना के धागों से पिरोकर लेखक ने एक ऐसे रचना संसार की सृष्टि की है, जो सहज ही पाठकों को बांध लेती है। यह कृति स्वतंत्रता पूर्व देश के इतिहास, समाज और संस्कृति का दर्पण है। लेखक के दादा कुमारन नायर ने उन्हें यह कहानी सुनाई थी। उस कहानी में उन्होंने विश्व भ्रमण के दौरान मिले जीवनानुभवों से कल्पना का पुट देते हुए हमें याद दिलाने का प्रयास किया है कि अगर आज हम स्वतंत्र हैं तो कुमारन नायर जैसे लाखों लोगों के त्याग और समर्पण की ही वजह से। हमें इसके लिए उनका कृतज्ञ होना चाहिए। स्वतंत्रता के जन्मसिद्ध अधिकार के लिए प्रदर्शन कर रही निहत्थी महिलाओं पर लाठीचार्ज करने का आदेश नहीं मानने के कारण ब्रिटिश सेना की नौकरी से निकाल दिए जाने के बाद कुमारन के जीवन में बड़ा बदलाव आता है।

लेखक ने उनके उस द्वंद्व को स्पष्टता से उकेरा है कि घरवाले क्या कहेंगे, इतनी अच्छे वेतन वाली नौकरी के बाद परिवार का खर्च कैसे चलेगा, लेकिन जब वे घर वापस लौटते हैं और सभी को अपनी कहानी सुनाते हैं तो सबके चेहरों की खुशी उनके सारे द्वंद्व मिटा देती है। एक नए निश्चय के साथ वे दोबारा जीवन शुरू करते हैं। कुमारन कार बेचने का व्यवसाय शुरू करते हैं, लेकिन इससे पहले कि धंधा जम सके और जिंदगी की गाड़ी पटरी पर चल सके, दुनिया भर में फैली आर्थिक मंदी के कारण जीवन में नया मोड़ आता है और वे सिंगापुर पहुंच जाते हैं। वहां भी वे पैर जमा पाएं, इससे पहले ही दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो जाता है। सिंगापुर पर जापान के कब्जे के बाद कुमारन एक खुफिया स्कूल में भर्ती हो जाते हैं और जापान की सहायता से भारत को स्वतंत्र कराने में जुटे लोगों के साथ मिलकर सशस्त्र क्रांति की राह पर चल पड़ते हैं। उन्हें एक खास मिशन पर भेजा जाता है, लेकिन इससे पहले कि वे इसमें सफल हों, उन्हें अंग्रेजी सेना गिरफ्तार कर लेती है। बंद कमरे में चली कानूनी कार्यवाही के बाद उन्हें फांसी दे दी जाती है। पुस्तक में जापान की उन गलतियों का भी उल्लेख है, जिसके कारण उसके सैनिकों को बिना लड़े ही हथियार डाल देने पड़े थे।

उत्तर पूर्व की तरफ से भारत में प्रवेश के प्रयास में उसके ज्यादातर सैनिक मलेरिया के कारण मारे गए। यही नहीं, उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति से बिल्कुल अनजान होना भी उनके विरुद्ध गया। अगर ऐसी रणनीतिक गलतियां नहीं हुई होती तो शायद आजाद हिंद फौज के नेतृत्व में 1947 से पहले ही देश स्वतंत्र हो गया होता। हालांकि भारत को आजाद कराने के लिए जर्मनी और जापान जैसे तानाशाही देशों की सहायता लेने पर क्रांतिकारियों की काफी आलोचना की जाती है, लेकिन यह भी सच है कि इस सशस्त्र विद्रोह के दबाव ने भी अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए सोचने पर विवश किया। कुमारन जैसे लोगों की धरती पर कोई पहचान नहीं रहे, इसलिए अंग्रेजों ने उनकी कब्र पर कोई निशान नहीं छोड़ा। ऐसे न जाने कितने लोग हैं, जिनकी कोई पहचान नहीं है। लेकिन वे लोग ही असली हीरो हैं, जिनके अदम्य साहस और अप्रतिम बलिदान की नींव पर देश की स्वतंत्रता का आलीशान महल खड़ा हुआ। ऐसे और लोगों की कहानियां इस पीढ़ी को सुनाई जानी चाहिए, ताकि उन्हें भी पता चले कि चुनिंदा हस्तियों ने नहीं, बल्कि पूरा देश आजादी के लिए लड़ा था।

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पुस्तक का नाम : द स्वराज स्पाइ
लेखक : विजय बालन
प्रकाशक : हार्पर कालिंस
मूल्य : 599 रुपये
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