यतीन्द्र मिश्र

वर्ष 2022 बीतने को आया है। इस वर्ष कई उल्लेखनीय कृतियों का प्रकाशन हुआ जिसकी चर्चा अपेक्षाकृत कम हुई। कथा, कथेतर और कविता विधा में इस वक्त हिंदी में कई पीढ़ियां सक्रिय हैं। उनमें सबसे पहले चर्चा वरिष्ठ लेखिका मालती जोशी के कहानी संग्रह ‘ये तो होना ही था की’। इसका प्रकाशन प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली से हुआ है। मालती जोशी हिंदी की उन चंद लेखिकाओं में शामिल हैं जिन्होंने अपने लेखन से न केवल हिंदी कथा को समृद्ध किया बल्कि अपनी लोकप्रियता से हिंदी की चौहद्दी का विस्तार भी किया। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित उनकी उपरोक्त कृति में बारह कहानियां संकलित हैं। इस संकलन की कहानियां पाठकों के मर्म का स्पर्श करती हैं और उनकी संवेदनाओं को झकझोरती भी हैं। मालती जोशी के बारे में कहा जाता है की उनकी कहानियां घरेलू जीवन पर केंद्रित रहती हैं। मालती जोशी मानती भी हैं कि कि वो एक सामान्य गृहिणी हैं, घर परिवार से परे उनकी कोई दुनिया नहीं है। उनका जीवन बड़ा ही सपाट रहा है। इसलिए उनका अनुभव संसार भी सीमित है। ये उनका बड़प्पन है लेकिन उनकी कहानियों का यही घरेलूपन उन्हें पाठकों के बीच कई दशकों से लोकप्रिय भी बनाए हुए है। इस संग्रह में उनकी एक बेहद खूबसूरत कहानी अहं का हिमखंड प्रकाशित है। ये पारिवारिक रिश्तों के संघर्ष की कहानी है। अन्य कहानियों में घरेलू जीवन के साथ एक सामाजिक संदर्भ भी है।

कहानी के बाद हम बात करते हैं हिंदी के वरिष्ठ कवि सुरेश ऋतुपर्ण के काव्य संग्रह इकहरी नहीं है पानी की कहानी, जिसका प्रकाशन विजया बुक्स नई दिल्ली ने किया है। सुरेश ऋतुपर्ण का ये चौथा काव्य संग्रह है जिसमें उनकी इकतालीस कविताएं संकलित हैं। ऋतुपर्ण का साहित्यिक जीवन पांच दशक से अधिक का है। इतने लंबे साहित्यिक जीवन में भले ही चार कविता संकलन का प्रकाशन हुआ है लेकिन ऋतुपर्ण की काव्य संवेदना में लगातार निखार रेखांकित किया जा सकता है। समीक्ष्य संग्रह में हाइकू शैली में लिखी उनकी कविताओं के साथ साथ लंबी कविताएं भी संकलित हैं। इस संकलन में उनकी एक लंबी कविता ‘मानव नहीं है पाप की संतान’ में शिल्प की एकाग्रता और एकान्विति के लिए उल्लेखनीय है। वो अपनी कविताओं में बहु स्तरीय अर्थ गांभीर्य का सृजन करते हैं। अपनी इन कविताओं में ऋतुपर्ण अपने समय के यथार्थ को तो संजोते ही हैं, उसके चित्रण से पाठकों को झकझोरते भी हैं।

जब भी हिंदी गजल की बात होती है तो दुश्यंत कुमार की बहुत चर्चा होती है। कई बार हिंदी आलोचकों से ये चूक हो जाती है जब वो जयशंकर प्रसाद के संग्रह आंसू का स्मरण नहीं कर पाते हैं। इस वर्ष हिंदी के गजलकार और साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक का गजल संग्रह करवट वक्त बदलता है का प्रकाशन हुआ। इसको सामयिक प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। यह उनका सत्रहवां गजल संग्रह है। माधव कौशिक की इन गजलों में बहर छोटी हो या बड़ी लेकिन उसकी मारक व्यंग्यात्मकता और जिंदगी के प्रति उनका प्रेम प्रतिबिंबित होता है। जब वो कहते हैं कि तूफानों से आंख मिला कर, डटे रहो/ झुका हुआ शायर का सर बेमानी है, तो स्पष्ट रूप से वो एक शायर के मन को पाठकों के सामने रख देते हैं। इनकी गजलों में समकालीन यथार्थ भी खुलकर सामने आता है जब वो कहते हैं कि आदमी ढल के हो गया पुरजा/ काम सारे मशीन पर फैले। या फिर जब वो कहते हैं कि सुना तो ये था कि सभी अपना भाग ले गए/ शरीफ लोग क्यों अपने दामन पे दाग ले गए। इनकी गजलों में प्रेम भी है, तड़प भी है लेकिन इसमें निराशा कहीं नहीं दिखाई देता है। वो अपने गजलों में आशा की मशाल लेकर खड़े दिखते हैं। यही उनको अन्य गजलकारों से अलग बना देता है।

हिंदी में पत्र साहित्य की एक लंबी परंपरा रही है। डा रामविलास शर्मा और केदारनाथ अग्रवाल की चिट्ठी-पत्री ने हिंदी साहित्य जगत का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया था। उसके पहले भी हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं में लेखकों के पत्र व्यवहार प्रकाशित होते रहे हैं। चांद तथा प्रभा पत्रिका में प्रेमचंद के कई पत्र प्रकाशित हुए थे। कई पत्रों के संकलन भी पुस्तकाकार प्रकाशित हुए। इस वर्ष राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली से चिट्ठियां रेणु की भाई बिरजू को प्रकाशित हुआ है। इस संकलन में हिंदी के कालजयी कथाकार फणीश्वरनात रेणु और उनके घनिष्ठ रहे बिरजू बाबू के पत्र संकलित हैं। इन पत्रों में रेणु के व्यक्तित्व की कई रोचक और दिलचस्प जानकारियां सामने आती हैं। अपने एक पत्र में रेणु ने लिखा है कि उनके पिता जी ने उनका नाम रेणुआ इसलिए रखा था कि उनपर बहुत ऋण हो गया था। वही रेणुआ नाम आगे चलकर रेणु हो गया लेकिन वो कर्ज और आर्थिक तंगी से कभी उबर नहीं पाए। रेणु अपनी हर बात पत्रों के जरिए बिरजू बाबू से करते थे। पेड़ कटवाने से लेकर उसको बैलगाड़ी पर लदवाने तक की बात उनके पत्रों में मिलती है। इन संकलन की विशेष बात यह है कि इसमे रेणु के कई हस्तलिखित पत्रों को जस का तस प्रकाशित किया गया है। संकलनकर्ता विद्यासागर गुप्ता की टिप्पणियों के साथ। इस वर्ष इन पुस्तकों की चर्चा कम हुई लेकिन ये पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं।