भोपालः मप्र राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने शरद व्याख्यान माला समारोह के तहत इस बार 'भारतीय ज्ञान परंपरा के आदि स्त्रोत' विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया. इस अवसर पर समिति द्वारा दिए जाने वाले अलंकरण भी प्रदान किए गए. समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शंकराचार्य भानपुरा पीठ के स्वामी दिव्यानंद तीर्थ ने शिरकत की. मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में स्वामी दिव्यानंद तीर्थ ने कहा कि कार्लमार्क्स और साइमन फ्रायड की विचारधाराओं ने पूरे विश्व को भ्रमित कर रखा है.इनमें एक अर्थ को महत्त्व देता है दूसरा काम को, लेकिन भारतीय दर्शन ने इन दोनों को ही महत्त्व दिया है. अर्थ को धर्म से और काम को मोक्ष से जोड़ा है. भारतीय ज्ञान तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों को ही मानता है. अध्यक्षता पूर्व प्रशासनिक अधिकारी सुखदेव प्रसाद दुबे ने की. उन्होंने कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा जो मार्गदर्शन देती है, उसका पालन किया जाना चाहिए. कार्यक्रम में इंडोनेशिया से आए भारतीय संस्कृति के साधक डॉ. प्रभु दरम्यांसा भी उपस्थित रहे. इस दौरान साहित्यकार गीत चतुर्वेदी को शैलेश मटियानी स्मृति कथा सम्मान भी प्रदान किया गया. इस अवसर पर समिति की पत्रिका अक्षरा के नवीन अंक तथा साहित्यकार गौरीशंकर शर्मा गौरीश के दोहा संकलन का लोकार्पण किया गया.
सागर विवि के दर्शन विभाग के अध्यक्ष प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा व्याख्यानमाला में अपने विचार रखते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा जड़ नहीं बल्कि सतत प्रवाहमान है, इसमें विवेक के उपयोग की स्वतंत्रता है. भारतीय संस्कृति-सभ्यता आदि भौतिक ज्ञान परंपरा को महत्त्व नहीं देती बल्कि आदि वैदिक आध्यात्मिक प्रवृत्ति को महत्व देती है. प्रो. शर्मा का कहना था कि किसी भी सभ्यता और संस्कृति का उत्थान-पतन उसकी आर्थिक स्थिति और राजनीतिक स्थिति नहीं, बल्कि ज्ञान परंपरा होती है. भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही ज्ञान परंपरा को महत्त्व दिया है. उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा के आदि स्त्रोत 14 विद्यास्थानों का उल्लेख किया और वेद, उपनिषद् व पुराणों की सूक्ष्म व्याख्या भी की. विशिष्ट अतिथि डॉ. प्रभु दरम्यांसा ने कहा कि बाली में हम भारतीय हिन्दू परंपरा को सहेज रहे हैं, हमारे यहां मंदिरों में पाश्चात्य परिधान पहनकर नहीं जाया जा सकता है, उन्होंने अपने देश में गाए जाने वाली रामायण की बानगी भी दी, डॉ. दरम्यांसा ने भारतीय परंपराओं से परिचित होने सभी को बाली आने निमंत्रण दिया. कार्यक्रम में समिति के मंत्री संचालक कैलाश पंत सहित तमाम साहित्यकार और प्रबुद्धजन मौजूद रहे. इसी समारोह में नरेश मेहता स्मृति वांग्मय सम्मान डॉ. कृपाशंकर सिंह शिमला को प्रदान जाना था, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वे नहीं आ सके. जिसके चलते उन्हें यह सम्मान समिति के आयोजन बसंत व्याख्यान माला या उनके निवास पर पहुंचाया जाएगा.