पटना, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में ' हिंदी के उन्नयन में महात्मा गांधी का योगदान ' विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और सांसद डॉ सी पी ठाकुर ने कहा " गांधी जी भारतीयता और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए हिन्दी को आवश्यक मानते थे। वे यह जानते थे कि, भारत की भाषा से हीं देश को स्वतंत्रता मिल सकती है और भारत की भाषा से हीं देश की उन्नति हो सकती है। अपनी भाषा के अभाव में देश गूंगा हो जाता है।"
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत और विषय प्रवर्तन करते हुए सम्मेलन के कार्यकारी प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा " हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाए जाने में महात्मा गांधी की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रही। देश की राज काज की भाषा भारत की कौन सी भाषा हो? इस प्रश्न के उत्तर में कई बिंदुओं पर विचार किया गया, जिनमें संपूर्ण राष्ट्र द्वारा उसकी ग्राह्यता, सरलता से सीखी और समझी जा सकने वाली, अधिकांश क्षेत्रों में बोली जानेवाली भाषा होना सम्मिलित था। "
बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने कहा " वर्ष 1910 में जब अखिल भारत वर्षीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना महामना पं मदन मोहन मालवीय जी की अध्यक्षता में हुई, तो गांधी जी ने पूरा समर्थन दिया। सम्मेलन के 8वें और 35वें अधिवेशन की अध्यक्षता भी उन्होंने की। उन्होंने अनेकों साहित्यकारों को हिन्दी में लेखन के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया। उनके निर्देश पर देश रत्न डा राजेंद्र प्रसाद, बाबू गंगा शरण सिंह जैसे नेताओं ने भी हिन्दी के प्रचार के लिए, दक्षिण भारत की लंबी-लंबी यात्राएँ की। गांधी जी बोलचाल की सरल हिन्दी के पक्षधर थे। उनका विचार था कि सरल शब्दों के प्रयोग से इसे शीघ्रता से लोकप्रिय बनाया जा सकता है।"
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा " आकाशवाणी ने गांधीजी की आत्म-कथा का उनके हीं स्वर में रेकार्डिंग कराया था, जो हिन्दी में था और उसका प्रसारण अनेक किश्तों में किया गया। "
डा मधु वर्मा, डा वासुकी नाथ झा, बच्चा ठाकुर, जनार्दन पाटिल, डा सुधा सिन्हा, प्रो उमेशचंद्र शुक्ला, राज कमार प्रेमी, जयप्रकाश पुजारी, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, शुभचंद्र सिन्हा, आनंद किशोर मिश्र, डा आर प्रवेश, लता प्रासर, शशि भूषण कुमार, विभारानी श्रीवास्तव, प्रभात धवन, आशा अग्रवाल, नेहाल कुमार सिंह 'निर्मल', अर्जुन प्रसाद सिंह, साहू विजय सिंह, ज़फ़र अहसन, मूलचन्द्र, ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।