नई दिल्लीः हाइकु गंगा पटल पर 'विश्व हिंदी हाइकु उत्सव' सम्पन्न हुआ, जिसमें 18 हाइकुकारों ने प्रतिभागिता की. सभी ने एक स्वर से हिंदी भाषा को देश का गौरव बताया और उसकी सरलता, वैज्ञानिकता के साथ उसकी व्याकरणिक संरचना की बात करते हुए उसकी सांस्कृतिक विरासत को हाइकु के माध्यम से प्रस्तुत किया. कार्यक्रम के संचालक डॉ शैलेश गुप्त ने  सरस्वती वंदना 'जले उर में/ ज्ञान ज्योति सर्वदा/ हे माँ शारदे' सुनाकर परम्परागत तरीके से हाइकु उत्सव का शुभारंभ किया. साधना वैद ने 'हिंदी हैरान/अपने ही लोगों ने/ रखा न मान' सुनाया, तो इन्दिरा किसलय ने 'वट सी हिंदी/ फैला रही जटाएं/ वंश बढ़ाए' सुनाकर उत्साह बढ़ाया. प्रतिमा प्रधान ने 'हिंदी भी आज/ हो गयी डिजिटल/ विश्व पटल' तो अंजू निगम ने 'हो जयघोष/ यश कीर्ति फैलाए/ हिंदी की भाषा' सुनाया. डॉ कल्पना दुबे ने 'विदेशी भूमि/ अपनी सी लगती/ भाषा जोड़ती,' डॉ सुशीला सिंह ने 'भाषा ही नहीं/ संस्कृति का पर्याय/ अपनी हिंदी.' डॉ सुभाषिनी शर्मा ने 'हिंदी का रथ/ अलंकारों से सजा/ सुन्दर पथ.' सुनाया.


डॉ सुरंगमा यादव ने 'स्वर व्यंजन/ हिंदी का व्याकरण/ है समुन्नत,' पुष्षा सिंह ने 'खिला कँवल/ मान सरोवर में/ हिंदी निर्मल,' डॉ सुकेश शर्मा ने 'खिला है मन/ परदेस में सुन/ अपनी बोली,' नीना छिब्बर ने 'कथा कहानी/ सदियों से रचती/ हिंदी की शान, निहालचन्द्र शिवहरे ने 'देश की आत्मा/ हिंदी है प्राणवायु/ सशक्त भाषा,' वर्षा अग्रवाल ने 'हिंदी सहेजे/ सुसमृद्ध साहित्य/ संस्कृति आत्मा,' आनन्द शाक्य ' हिंदी के बिना/ व्यर्थ है मूंगा मोती/ राष्ट्र है गूंगा,' सरस दरबारी ने 'हिंदी के लिए/ उठे अभिमान से/ हर मस्तक,' रवीन्द्र प्रभात ने 'हिंदी सुगम्य/ शब्द सिन्धु अथाह/ पूर्ण प्रवाह,' शैलेष गुप्त ने 'मन है हिंदी/ हिंदी है हिन्दुस्तान/ भाषा महान', डॉ मिथिलेश दीक्षित ने 'हिंदी है माता/ सर्जक सृष्टि से/ जोड़ती नाता,' सुनाते हुए अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि हाइकु गंगा परिवार ने हाइकु कविता के विकास में अमूल्य योगदान दिया है. अनुभूति की सघनता, गहनता, कवित्व और सटीक भाषिक शब्द विन्यास के कारण हिंदी भाषा में भी हाइकु विशिष्ट कविता हो गई है. संचालक डॉ शैलेष गुप्त ने आभार व्यक्त किया.