रचनाकार विजयश्री तनवीर के पहले कहानी संग्रह 'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' की खूब चर्चा है, और इस चर्चा में ममता कालिया और रमणिका गुप्ता जैसी स्थापित साहित्यकार भी शामिल हो चुकी हैं. ममता जी ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि संकलन का शीर्षक इस कहानी तक खींच ले गया, तो मैंने पाया कि रचना में कथ्य और शिल्प में मौलिकता लबालब है. कोलकाता के मेट्रो के धक्कों के बीच युवा अनुपमा गांगुली के साथ हम भी सफर करते हैं, जिसकी गोद में दूध हुडकता शिशु है और आंखों में वह अनजान युवक, जो रास्ते भर उसकी ढाल बना रहता है. एक दिन उतना ही अकस्मात यह मूक प्रेम विदा हो जाता है. कहानी की भाषा शैली निखरी हुई है. 'खिड़की', 'समंदर से लौटती नदी',अन्य सशक्त कहानियां हैं. संबंधों का विस्थापन और विचलन इन कहानियों में मास्टर स्ट्रोक्स में आता है. आलोचना की आपाधापी के बावजूद विजयश्री की कहानियों का स्वागत होना चाहिये.
किसी भी नए रचनाकार को इससे अधिक क्या चाहिए कि कथाकार ममता कालिया जैसे लोग ऐसी टिप्पणियां करें. उसी पोस्ट पर लेखक विमल कुमार लिखते हैं, तीन पढ़ी जिसमे पहली वाकई सुंदर है. अनुपमा वाली थोड़ी कमजोर. अंतिम की अंतिम सुंदर. प्रियंका ओम की भी पढ़िए, वह भी प्रयास कर रही है अच्छा लिखने का. नई कहानीकारों का स्वागत होना चाहिए. अभी कुछ दिन पहले रमणिका फाउंडेशन, युद्धरत आम आदमी और ऑल इंडिया ट्राइबल लिटरेरी फोरम द्वारा आयोजित मासिक गोष्ठी में भीमसेन आनंद के साथ विजयश्री तनवीर ने इसी संकलन से कहानी-पाठ किया था. तब इनकी कहानियों पर वक्तव्य देते हुए सुशील कुसुमाकर ने कहा था, भीमसेन आनंद जहां अन्तर्जातीय विवाह को अपनी कहानी में सामाजिक बदलाव के रूप सामने रखते है, वहीं विजयश्री तनवीर की कहानी स्त्री मन की बात कहती है. दोनों ही कहानियां सामाजिक और यथार्थ स्थिति की कहानी है जो किसी ना किसी रूप में आमजन से जोड़ती हैं. उस कार्यक्रम में अजय नावरिया, मृदुला प्रधान, सूरजपाल चौहान, लक्ष्मी गीडम, नेहा, रानी कुमारी, पंकज इंकलाबी, मजीद अहमद, विपिन चौधरी आदि उपस्थित थे.
इस किताब के बिक्री वाले पेज पर अमेजॉन ने लिखा है, 'कुल नौ कहानियों का यह संग्रह अपने आप में स्त्री-पुरुष संबंधों की जटिल सच्चाइयों को समेटे हुए है. ये फँतासियों और नाटकीयता से बहुत दूर अवसाद और कुंठाओं की सहज कहानियां हैं. यहां आपको पारंपरिक वर्जनाओं और उनसे उपजे अंतर्द्वंद से जूझते ऐसे बहुत से किरदार मिलेंगे जिन पर बंधनों को तोड़ देने का फ़ितूर है और उन्हें तोड़ देने का मलाल भी. ये सभी कहानियां एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा हैं. कहानियों की भाषा सरस और प्रवाहमयी है.। कहानीकारा ने बेबाक विषयों को बेहद शालीनता से बुना है. एकदम नए शिल्प और शैली की ये कहानियां अनायास ही पाठक के भीतर गहरे उतर जाती हैं. इन कहानियों का सबसे प्रबल पक्ष यह है कि सभी कहानियों में कहीं-न-कहीं आप ख़ुद से रू-ब-रू होंगे और कमज़ोरी यह कि ये कहानियां आपको बेचैन और बहुत बेचैन कर सकती हैं.'
किसी भी किताब की कहानियों के किरदार अपने अपने हिस्सो को सही तरीके से जी लें तो कहानी दिल मे उतर जाती है।