बेगूसराय: विप्लवी पुस्तकालय, गोदारगावां में दो  दिनों का साहित्यिक आयोजन किया गया। इस मौके पर  'समाज, साहित्य और धर्म' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। साथ ही सुप्रसिद्ध आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी को 'प्रथम नामवर सम्मान  भी प्रदान किया । स्वागत वक्तव्य देते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के राजेन्द्र राजन ने नामवर सिंह की स्मृति को नमन करते हुए भगत सिंह  और अन्य शहीदों को याद  करते हुए अतीतजीवी होने का सवाल उठाया।  'समाज, साहित्य और धर्म' विषय  पर संगोष्ठी  में  भगत सिंह को उद्धृत करते हुए लीलाधर मंडलोई ने कहा " धर्मो ने भारत का बेड़ा गर्क किया । आज समाजवाद के बिना कोई विकल्प नहीं, भले उसमें कितना भी वक्त लगे।  अब दुनिया को गुलाम बनाना है तो दो ही रास्ते हैं कि उनकी भाषा को समाप्त कर दो तथा अपनी भाषा को केंद्रीय बना दो। यदि भाषा आपकी न रहेगी तप आप सोच भी न सकेंगे। दूसरी चीज है संस्कृति। आज दो  रुपये के सैशे के माध्यम से उनकी  संस्कृति पहुंच रही है। यदि संवाद का भूमंडलीकरण न होगा  यानी अपने विरोधियों से भी संवाद न करेंगे तो नहीं बात आगे न बढ़ेगी।"  अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर वेदप्रकाश ने कहा कि " धर्म हमें आज अवरुद्ध कर रहा है लेकिन धर्म हमें कुछ कर्तव्य भी सिखाती है। गांधीवादी चिंतक रामजी सिंह ने कहा कि " धर्म का रूप बदलना चाहिए। सभी धर्म की अच्छाइयों को ग्रहण कीजिये।" 

वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा " मुझे नामवर जी के नाम का सम्मान मिलना एक बड़ी बात है। मुझे जो सम्मान में 11000 रुपया मिला वह 11 करोड़ के समान है।  इस अवसर पर उमेश कुंवर कवि की पुस्तक 'डरावना सुराख ' का विमोचन मंचस्थ अतिथियों द्वारा किया गया। धन्यवाद ज्ञापन रमेश प्र० सिंह ने की।

सभा की शुरुआत में रूपेश कुमार एवं बंटी कुमार के नेतृत्व में गीत की प्रस्तुति हुई। इस अवसर पर डॉ० सुनीता गुप्ता, जयप्रकाश , प्रभात सरसिज, राजकिशोर राजनरानी श्रीवास्तव, सर्वेश कुमार, ललन लालित्य, राम कुमार सिंह, आनंद प्र० सिंह, अमरनाथ सिंह, शिवेश्वर सिंह, राम बहादुर यादव, भूषण सिंह, नरेंद्र कुमार सिंह, राजेश कुमार, विष्णुदेव कुंवर, मनोरंजन विप्लवी, अगम विप्लवी, अवनीश, शमशेर विप्लवी, रामप्रकाश राय, राघवेंद्र कुमार, राम उदय यादव, दिगम कुमार, सुदर्शन कुमार आदि मौजूद थे।