मीनाक्षी झा बनर्जी पेशे से  चित्रकार हैं।पिछले दी दशकों से वो मिथिला के तत्वों को लेकर काम कर रही हैं। उनकी कृतियां सरकार व कारपोरेट दोनों प्रतिष्ठानों में संग्रहित हैं। मीनाक्षी  की कला कृतियां राज्य व  राष्टीय स्तर की कई प्रदर्शनियों में शामिल हो चुकी हैं। इसके साथ साथ वे कई पुरस्कारों व सम्मानों से नवाजी जा चुकीं  हैं। उनसे बातचीत पर आधारित लेख प्रस्तुत है।   

दसवीं पास करने के बाद मैंने पेन्टिंग को अपना लिया, स्नातक तक की पढ़ाई संस्कृत से की, लेकिन  दसवीं के बाद मैंनेे मन से कला को ही अपना जीवन मान लिया। उस वक्त चाक्षुष कला बतौर प्रोफेशन चुनना, वो भी एक महिला होकर, चुनौतीपूर्ण था। तो इसमें कोई विधिवत पढ़ाई नहीं की ,लेकिन डिस्टेंस एजुकेशन  से मैने बी. एफ. ए.  एवं एम. एफ .ए भी किया। कला का सृजन तो कलाकार के हाथ में है लेकिन इसका मार्केट बहुत सीमित  है, और जबतक यह आय का साधन ना बने किसी भी कलाकार के लिए इसकी सतत साधना एक चैलेन्ज है।

 यामिनी राय के चित्र बचपन से मेरे मन मस्तिष्क पर छाए रहते थे। रजा़ का रंग संयोजन, ज्योति भट्ट का कंपोजि़शन और लोक-कला की सरलता हमेशा कुछ नया करने को प्रेरित करता रहा। 

मेरा काम मेरे परिवेश का आईना होता है, विधिवत पढ़ाई नहीं करने से मेरा व्याकरण मेरे अनुभवों से बना है, तो कुछ भी बहुत तय नहीं होता, लेकिन औरतोंसमाज मुख्य रूप से मेरे मष्तिक में  अंकित है।  मुझे लगता है कि समाज में जागरूकता लाने की आवश्यकता है, लोग कला को एक ख़ास वर्ग के लोगों की पसन्द बताते हैं जिनके पास पैसे हैं वही कला के संवाहक हो सकते हैं। पर ऐसा नहीं है, मध्यमवर्गीय परिवार, कला को खुद को अब  भी नहीं जोड़ते, उन्हें कपड़े, फर्नीचर में, खर्च करने में कुछ भी नहीं लगता पर  पांच हजार की  कलाकृति भी उन्हें पैसे की बर्बादी नज़र आती है। 

अभी भी मिट्टी से गढ़ी हुई मूर्ति या चमचमाती चाइनीज मूर्ति ही उनके घर आएगी, तो सवाल समझदारी का भी तो है। सरकार से अपेक्षा है कि सरकारी कार्यालयों में कलाकृतियाँ लगें, बड़ी बड़ी मूर्तिकार की भी कलाकृक्तियों का  संवाहन किया जाय, कला एवं शिल्प कॉलेज में शिक्षण  कार्य वैसे ही हों जैसे बाहरी कॉलेजों में होता है, बच्चों के लिए उचित जानकारी की सारी व्यवस्था हो। 

बिहार में ललित कला  अकादमी का गठन हो, सही लोग आऐं, विभिन्न कार्यक्रमों में बिहार के कलाकार का शिरकत करें। ICCR के तरफ से बिहार के चाक्षुष कला के कलाकार अन्य देशों में जाऐं, ज्यादा से ज्यादा कलाकारों का एक्सपोजर हो। तभी हमारे राज्य में कला का विकास हो सकेगा। 

(अनीश अंकुर से बातचीत पर आधारित)