पटना, 11 सितंबर। "समय के साथ सब कुछ बदलता है। राजनीति भी तेजी से बदलती है लेकिन राजनीति उतनी तेज़ी से नहीं बदलती जितनी तेजी से संगीत बदलता है। 1931 के बाद से  संगीत यात्रा शुरू होकर आज तक संजीदगी से बढ़ती चली आयी है। " ये बातें लेखक और संगीत विशेषज्ञ पंकज राग ने बिहार संग्रहालय में आयोजित ' धुनों की यात्रा  'कार्यक्रम में 'भारतीय संगीत की बदलती  प्रवृत्तियां  'विषय पर आयोजित व्याख्यान में कही। 'धुनों की यात्रा ' नाम से  पंकज राग के की एक महत्प्रवपूर्काण पुस्शितक भी है। कार्यक्रम की शुरुआत ' दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें' गाने से हुई। पंकज राग  गानों  के सफर में  तब्दीलियों को रेखांकित करने के लिए अपने वक्तव्य के बीच बीच में कम्प्यूटर के माध्यम से  गीतों के बोल भी सुनवा रहे थे। 

अर्थशिला और बिहार संग्रहालय के संयुक्त तत्वाधान में हुए इस कार्यक्रम में पटना के साहित्यिक-सांस्कृतिक जमात के लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा  थे।  भारत सरकार के खेल मंत्रालय में आला अफसर पंकज राग ने 1930 से लेकर अब तक की भारतीय संगीत की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा" पहले का संगीत स्लो मोशन का संगीत था लेकिन अब फास्ट संगीत का ज़माना है।  उस वक्त की स्वर रचना आसान हुआ करती थी । रागों को मिश्रित कर राग बनाये जाते थे।पहले घुंघरू, पायल थाप, तबले की जोर चलती थी जबकि आज फास्ट म्यूजिक का।  पहले संगीतकार कोठे  से आया करते थे और वैसे ही गाने  गाया करते थे। अब का संगीत डीजे बनकर गली-गली में  धूम मचा रहा है।  रवींद्र संगीत, लोक संगीत, पियानो सहित जमाने के नए संगीत का अब दौर है।

पंकज राग ने आगे विस्तार से बताते हुए कहा " पहले स्टूडियो के पास अपने -अपने संगीतकार थे, आज हर गायक खुद का संगीत निर्देशक भी बन रहा है। आज़ादी से पहले देशभक्ति गीतों का दौर था, कोठे के संगीत भी खूब चर्चा में था लेकिन समय के साथ सब कुछ बदल गया। संगीत में जबर्दस्त बदलाव आया है।

पंकज राग ने कई नई जानकारी से लोगों को अवगत कराया " पहली बार फ़िल्म अमृत मंथन में गानों का प्रयोग किया गया। इसके बाद कई गाने आये जिनमें अलग-अलग प्रयोग किये गए। इस मॉडर्न जमाने में लोग रवींद्र संगीत, माउथ आर्गन, पियानो बजाते हैं।  इकाई मॉडर्निटी में पंकज मलिक का गाना " ये कौन आज आया , सबेरे-सबेरे '' बेहद मशहूर हुआ। भारत की स्वतंत्रता का असर संगीत पर बजी गहरा पड़ा। पहली बार संगीतकार अनिल विश्वास ने आर्केस्ट्रा का इस्तेमाल किया।"

ज्ञातव्य हो कि पंकज राग की पहचान एक कवि व लेखक के रूप में रही है। उनका काव्य संग्रह '' ये भूमंडल की रात है" चर्चित रही है। उन्हें उस संग्रह के लिए केदार सम्मान भी प्राप्त हो चुका है। 1857 को लेकर उनकी पुस्तक '' 1857 इन ओरल ट्रेडिशन " है।

 इस व्याख्यान में  अर्थशिला के संजीव कुमार के साथ आठ मशहूर कवि आलोकधन्वा, अरुण कमल, तरुण कुमार, जयप्रकाश, अजय पांडे , विनोद कुमार वीनू, सहित बड़ी संख्या में पटना का नागरिक समाज उपस्थित था।