नई दिल्लीः लॉक डाउन भले हट रहा है, पर कोरोना गया नहीं है. इसलिए समझदार लोग घर से बाहर बिना आवश्यकता के नहीं निकल रहे. इस निराशामयी विषम परिस्थिति में घर पर खाली बैठे कवि लोग ही अपनी कविताओं से उत्प्रेरक बनकर निःस्वार्थ भाव से जन सेवा में लगे हैं. हाल ही में 'आओ गुनगुना लें गीत' समूह द्वारा एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध छन्द शिल्पी बृजेन्द्र हर्ष ने की. मुख्य अतिथि हरगोबिन्द झाम्ब कमल व निवेदिता चक्रवर्ती थे. विशिष्ट अतिथि के रूप में केसर शर्मा कमल, रामचन्द्र आकाश और जयप्रकाश मिश्र की उपस्थिति थी. संयोजक भारतभूषण वर्मा और संचालक संजय जैन थे.
समूह के संरक्षक गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने सभी कवियों का स्वागत किया. आराधना सिंह अनु की सरस्वती वन्दना की बेहतरीन प्रस्तुति के साथ कवि सम्मेलन शुरू हुआ. बृजेन्द्र हर्ष ने पहली कविता से ही दिल जीत लिया. उन्होंने सुनाया, “मैं जीवन पथ का राही हूं, पथ को ही जीवन कर लूंगा. संकल्पों के श्रम साधन से, सारे शूल सुमन कर लूंगा.” डॉ जयसिंह आर्य ने पढ़ा, “अपने फन में तू पीडा ज़माने की भर, फिर तू सबके जिगर में उतर जायेगा. जूझना मुश्किलों से जो सीखे यहां, वो ही दुनिया में 'जय' अब संवर जायेगा.” हरगोबिन्द झाम्ब का कवितांश यों है, “कोई कुछ कहे जीवन को, वो निश्चित ही अनमोल है. जीवन मिले निश्चित सांसों का, नहिं बाद कोई तोल-मोल है.“
निवेदिता चक्रवर्ती ने अपनी रचना में सुनाया, “पाहन सा नियति बना दे तुझको, मन मेरे तेरे नदी बहाते चलना. बारम्बार समय गिराता रहे तुझे, तू दूसरों को बस उठाते चलना.” केसर शर्मा कमल ने पढ़ा, “जीवन धरा बचाने निकला, मेरे साथ चलेगा कौन. जंगल पेड़ उगाने निकला, मेरे साथ चलेगा कौन.” रामचन्द्र आकाश ने अपनी कविता से दुखों से साहस के साथ जूझने की प्रेरणा दी, “हंसते हुए लमहों को बांध कर, ग़मों की ग़र्दों को छांट कर, खुले आकाश के नीचे जीना सीख ले.” जयप्रकाश मिश्र ने अपने काव्यपाठ में कहा, “मेरे मन के इस दीपक को, तुम आज जलाने आ जाना. जैसे भी सम्भव हो तुमको, उसी बहाने आ जाना.” संजय जैन ने अपनी ग़ज़ल पढ़ी, “ठोकर लगाके वो मुझे पत्थर बना गया, पर ज़िन्दगी का फ़लसफा मुझको सिखा गया.” भारत भूषण वर्मा ने सुनाया, “कुछ की मंजिल है दूर बडी, कुछ की मंजिल है पास बडी. कुछ जीवन है रस की लहरें, कुछ में अवसाद भरे गहरे.” आराधना सिंह अनु ने पढ़ा, “कैसे-कैसे रंग दिखाती है ज़िन्दगी. जीने के हमको ढंग सिखाती है ज़िन्दगी.” प्रीतम सिंह प्रीतम ने पढ़ा, “वो जीवन क्या जिस जीवन में, आगे बढ़ने का जुनून न हो. वो रक्तशिरा मैं क्या कह दूं, जिस नस में बहता ख़ून न हो.“
इनके अतिरिक्त सन्तोष त्रिपाठी, धर्मेन्द्र अरोडा मुसाफिर, शीला गहलावत सीरत, रजनी श्रीवास्तव, श्रीकृष्ण निर्मल, अनिल धीमान पोपट कामचोर व बृजेश सैनी आदि ने भी अपनी कविताएं सुनायीं.