नई दिल्लीः हिंदी साहित्य जगत में गुलशेर खान शानी अपनी रचनाओं और खास तौर पर काला जाल उपन्यास के चलते हमेशा याद किए जाएंगे. आज उनकी पुण्यतिथि है. शानी न केवल अपने समय के महत्त्वपूर्ण कथाकार थे, बल्कि अपनी रचनाओं से उन्होंने लगातार हिंदी-जगत पर अपनी छाप छोड़ी. 16 मई, 1933 को मध्य प्रदेश के जगदलपुर में उनका जन्म हुआ था. वह हमारे दौर के एक महत्त्वपूर्ण कथाकार और संपादक रहे. उन्होंने साक्षात्कार, समकालीन भारतीय साहित्य और कहानी जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं के संपादन के साथ कहानी, उपन्यास, संस्मरण और निबंध विधा से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया. उनकी चर्चित कृतियों में उपन्यास- 'काला जल', 'कस्तूरी', 'पत्थरों में बंद आवाज', 'एक लड़की की डायरी', 'साँप और सीढ़ी', 'नदी और सीपियाँ'; कहानी संग्रह- 'बबूल की छाँव', 'छोटे घेरे का विद्रोह', 'एक से मकानों का नगर', 'एक नाव के यात्री', 'यु', 'शर्त का क्या हुआ', 'बिरादरी', 'सड़क पार करते हुए', 'जहाँपनाह जंगल'; संस्मरण- 'शाल वनों का द्वीप'; निबंध संग्रह- 'एक शहर में सपने बिकते हैं' शामिल है.


शानी की खासियत यह रही कि एक तरफ़ उन्होंने 'जनाजा', 'युद्ध', 'जली हुई रस्सी' सरीखी रचनाओं के जरिये, विभाजन के बाद मुस्लिम समाज के बहुत सारे डर, असमंजस और विरोधाभास को हमारे सामने रखा, तो दूसरी ओर 'जहाँपनाह जंगल' जैसी दुनिया उद्‌घाटित की और 'परस्त्रीगमन' पर एक अलग तरह का नजरिया पेश किया. उनकी लिखी कहानी 'एक नाव के यात्री' ऐसे ही एक रिश्ते के पश्चाताप की कहानी है. शानी की कहानियों में हमें आम लोगों के भीतर की दबी हुई वह चीख सुनाई पड़ती है, जिसे हम रोज मुल्तवी करते चलते हैं. शानी अपनी दूरबीनी नजर से परख कर मानव जगत के कथित बड़े कार्यकलापों को बौना, व्यर्थ और क्षणभंगुर बताते हैं. यही वजह है कि उनके पाठक अपने पात्रों की नियति के सहभोगी हैं- जाहे इसमें विद्रूपता हो, व्यंग्य हो या फिर कभी न भुलाया जानेवाला मान- अपमान. शानी ने 10 फ़रवरी, 1995 को इस दुनिया से विदा लिया था. उनकी स्मृति को नमन. 

(फोटो सहयोगः शानी फाउंडेशन)