नई दिल्ली में हिंदी सेवियों को सम्मानित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में फिल्मों की प्रभावी भूमिका की बड़ी सराहना की. पर जब भी हम हिंदी फिल्मों की बात करते हैं, उनकी लोकप्रियता के सर्वाधिक बड़े घटक गीतकार, संगीतकार और गायक की अहमियत को उसका उचित प्राप्य नहीं दे पाते. जागरण हिंदी अपनी भाषा की लोकप्रियता के हर घटक को उसी शिद्दत से याद करता है. आज उर्दू और हिंदी फिल्मों की सुप्रसिद्ध शख्सियत नूरजहां का जन्मदिन है. उनका जन्म 21 सितंबर, 1926 को पंजाब के छोटे से शहर कसुर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ. नूरजहां ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कज्जनबाई और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उस्ताद गुलाम मोहम्मद तथा उस्ताद बडे़ गुलाम अली खां से ली थी. 1947 में भारत विभाजन के बाद नूरजहां ने जब पाकिस्तान जाने का फैसला किया और अभिनेता दिलीप कुमार ने उनसे भारत में ही रहने का अनुरोध किया तो नूरजहां का जवाब था, 'मैं जहां पैदा हुई हूं वहीं जाउंगी.' पर नूरजहां क्या किसी एक जगह की, एक भाषा की हो सकती थीं? नहीं, उन्होंने हमेशा सरहदों को तोड़ा, चाहे वह निजी जीवन में परिवार रहा हो या गायिकी में देश और भाषा. वह जितना उर्दू की थीं, उतना ही हिंदी की भी.

'आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है' गीत के अपने सुरीले जादू से हिंदी उर्दू भाषियों के दिलों पर राज करने वाली नूरजहां ने हिंदी, उर्दू, सिंधी, पंजाबी आदि भाषाओं में लगभग 10 हजार से अधिक गाने गाए, तो फिल्म 'बड़ी मां' में लता मंगेशकर व आशा भोंसले के साथ एक्टिंग भी की. उन्होंने लगभग 12 मूक फिल्मों में काम किया. उन्होंने 'आहें न भरे, शिकवे न किए' कव्वाली जोहराबाई अंबालेवाली और अमीरबाई कर्नाटकी के साथ गाई. पाकिस्तान जाकर भी फिल्म उद्योग से उनका नाता बना रहा, उन्होंने 'चैनवे' और 'दुपट्टा' जैसी फिल्में बनाईं और 'गुलनार', 'फतेखान', 'लख्ते जिगर', 'इंतेजार', 'अनारकली', 'परदेसियां', 'कोयल' और 'मिर्जा गालिब' जैसी फिल्मों में अभिनय कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया. नूरजहां ने हिंदी के इतने सुरीले गाने गाये, कि पाकिस्तान, जिसने उन्हें मलिका-ए-तरन्नुम का खिताब दिया की सरहदें भी भारत में उनकी लोकप्रियता को तोड़ नहीं पाईं. उन्होंने 'ये लो मैं हारी पिया', 'जा जा जा वेवफा, कैसा प्यार कैसी प्रीत रे' जैसे बहुतेरे गीतों को अपनी आवाज दे अमर कर दिया. उनकी गायिकी का ही जलवा था कि फैज अहमद फैज की नज्म 'मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग' को नूरजहां ने इतना मशहूर कर दिया कि फैज साहब हमेशा कहा करते थे कि यह नज्म मेरी नहीं रही, यह तो नूरजहां की हो गई. यह कम बड़ी बात नहीं कि भारत में उनके प्रशंसकों में भारत रत्न लता मंगेशकर से लेकर गजल के बादशाह जगजीत सिंह तक शामिल थे. यों तो उनपर कई किताबें लिखी गईं, पर ऐजाझ गुल की किताब 'मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहान', जिस का अनुवाद सविता दामले ने किया ने लोकप्रियता के कई कीर्तिमान तोड़े.