वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भोजपुरी अध्ययन केंद्र ने परिचर्चा सह काव्य पाठ का आयोजन किया. इस अवसर पर  राहुल सभागार में अरूण होता द्वारा संपादित कोरोना कालीन कविताओं के संचयन 'तिमिर में ज्योति जैसे' पुस्तक का लोकार्पण भी हुआ. भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक कवि श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि 43 कवियों की 300 कविताओं का यह संचयन अंधकार की परतों को छीलता हुआ एक प्रकाशोन्मुख संचयन है, जिसमें हलचल है और प्रगति है. ये कविताएं स्मृति को आलोकित, वर्तमान को आलोड़ित और भविष्य को आलोकित करने वाली कविताएं हैं. मुख्य अतिथि के रूप में समालोचक प्रो रामकीर्ति शुक्ल ने कहा इस संग्रह में शामिल कविताओं में अनेक वैरायटी है. महामारी पर केंद्रित इन कविताओं का विषय एक है, किंतु पटकथाएं अलग-अलग हैं. उदासी से शुरू होकर आशा में परिवर्तित होने वाली ये कविताएं मृत्यु से होड़ लेती हुई प्रतीत होती हैं. आगे यह संग्रह बहुत महत्त्वपूर्ण साबित होगा. विशिष्ठ अतिथि न्यूरो चिकित्सक एवं समाजसेवी प्रो विजय नाथ मिश्र ने कोरोना से सावधान रहने की सलाह देते हुए कोरोना काल में समाज सेवा उपक्रम ऑक्सीजन फेरीवाला, ट्विटर ओपीडी की आरंभ यात्रा के बारे में बात की. डॉ मिश्र ने कहा कि जिस समय साहित्यकार तिमिर में ज्योति की उम्मीद लोगों में जगा रहे थे, विज्ञान अपनी तरह से लोगों का जीवन बचाने में लगा हुआ था. इस अवसर पर डॉ विजय नाथ मिश्र को भोजपुरी अध्ययन केंद्र की ओर से उनके सामाजिक योगदान के लिए सम्मानित भी किया गया.

मुख्य वक्ता कवि निलय उपाध्याय ने कहा कि संग्रह में शामिल कोरोना कालीन कविताएं एक ठूंठ समय में उस पर खिला हुआ फूल है. इस संकलन में एक पूरा समय है. यह रेत के बीच उम्मीद के दूब की तरह है. संग्रह की कविताएं युद्ध भूमि में आंदोलन के साथ जीवन में सम्मिलित हो जाने की कविताएं हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने कहा कि एक भयानक समय में सत्ता की क्रूरता से ज्यादा मीडिया की क्रूरता असहज करती है. ऐसे में साहित्य ही था जिसने मनुष्य की त्रासदी और संवेदना को पहचाना. इसने सामुदायिक सहयोग की भावना को भी पहचाना. उन्होंने कहा कि महामारी की भयावहता पर कवियों ने सबसे ज्यादा संवेदनशील कविताएं लिखी हैं. प्रकृति की सत्ता, ईश्वर और विज्ञान की सत्ता से ज्यादा ताकतवर है, इसका एहसास इस दौरान हुआ जिसे समकालीन कवियों ने अपनी कविताओं में दर्ज किया है. युवा आलोचक डॉ विंध्याचल यादव ने कहा कि यह देव संस्कृति और ईश्वरता के बरअक्स मनुष्यता को बचाए रखने की कविता है. इस संग्रह की कविताएं प्रकृति के तत्वों से सीधा जुड़ाव करती हैं. उन्होंने कहा कि कविता हमेशा हर्फों में नहीं होती क्रियाओं में भी होती है. ये कविताएं लोक की ठहरी हुई मानसिकता से टक्कर लेती हैं. डॉ विंध्याचल ने कहा कि कविता हमारे जमाने की आंखें हैं. इस संग्रह की कविताओं ने नया सौंदर्यशास्त्र गढ़ा है. शोध छात्र उदय प्रताप पाल ने कहा कि इस संग्रह में मजदूरों, विस्थापितों, प्रकृति और आपसी संबंधों पर लिखी गई बेजोड़ कविताएं हैं. सत्र संचालन युवा कवि अमरजीत राम, धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के डॉ रवि सोनकर ने किया. कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में काव्य पाठ हुआ, जिसकी अध्यक्षता निलय उपाध्याय ने की. मदन कश्यप, निलय उपाध्याय, शिवकुमार 'पराग', सरफराज आलम, पूनम शुक्ल, प्रिया भारती, अमरजीत राम, रामबचन यादव, सुशांत कुमार शर्मा, मनकामना शुक्ल, आर्यपुत्र दीपक, प्रतिभाश्री, गोलेन्द्र पटेल आदि ने अपनी कविताओं का पाठ किया. संचालन मनकामना शुक्ल ने किया. सेतु प्रकाशन समूह ने सहयोग किया.