नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने कथा-संधि कार्यक्रम के तहत प्रख्यात कथाकार महेश कटारे को बुलाया था. कटारे ने साहित्य प्रेमियों और लेखकों की उपस्थिति में दो कहानियां प्रस्तुत कीं. किवाड़ शीर्षक से सुनाई गई पहली कहानी में दो स्त्रियों कैलाशी और बतसिया द्वारा वर्तमान वर्ण व्यवस्था के आर्थिक पक्षों को बड़ी मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया था. दूसरी कहानी गांव का जोगी में बहुत ही रोचक शैली में गांव के जीवन संघर्षों को उकेरा गया था. कथा-पाठ के बाद चर्चित कथाकारों और साहित्यकारों ने महेश कटारे के लेखन और इन कहानियों पर अपने विचार व्यक्त किए.
इस अवसर पर वरिष्ठ कथाकार महेश दर्पण, कवि लीलाधर मंडलोई, देवेंद्र कुमार और अवधेश सिंह ने विस्तार से अपनी बात रखी. इन लेखकों ने कटारे के संपूर्ण कथा लेखन की जगह इन कहानियों पर केंद्रित रहते हुए अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि महेश कटारे के पास एक विशिष्ट शैली है. उनके पास एक ऐसी भाषा है जो उबाऊ होते कथन को भी पठनीयता प्रदान करती है. उनके कथ्य और शिल्प दोनों में ही जीवन के रस से भरा संघर्ष हैं. खास बात यह कि इनके कथ्य में ये संघर्ष दुख की बजाए उल्लास से परिपूर्ण है. कार्यक्रम के अंत में एक सवाल के जवाब में महेश कटारे ने कहा कि उनकी चिंता भाषा में से ‘देशज’ शब्द गायब होने को लेकर है. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया.