अंबिकापुर: तुलसी साहित्य समिति की ओर से राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पुण्यतिथि पर व्याख्याता अर्चना पाठक के निवास पर सरदार भगत सिंह विहंग की अध्यक्षता में काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ. मुख्य अतिथि प्रोफेसर मीना श्रीवास्तव और विशिष्ट अतिथि मंजू श्रीवास्तव थीं. शुरुआत मां वीणापाणि के छायाचित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन और पूनम दुबे की सरस्वती वंदना से हुआ. डॉ सुधीर पाठक ने कहा कि कविवर मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि की उपाधि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने प्रदान की थी. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से गुप्त ने खड़ी बोली को अपनी रचना का माध्यम बनाकर उसे समर्थ काव्यभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया. उन्होंने महाकाव्य-साकेत के अलावा यशोधरा, जयद्रथ का पंचवटी, भारत-भारती, द्वापर जैसे खण्डकाव्यों का सृजन किया. उनके नाटक रंग में भंग, हिडिम्बा, राजा-प्रजा और काव्यसंग्रह उच्छवास विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. गुप्त स्वभाव से लोक संग्रही कवि थे और अपनी युगीन समस्याओं के प्रति वे विशेष रूप से संवेदनशील रहे.
काव्यगोष्ठी में पूनब दुबे ने 'फूल भी तो शूल बनकर उम्रभर चुभते रहे/ बेड़ियां आभूषणों की बेवजह कसती रही' सुनाया, तो मंशा शुक्ला ने 'दुखभरी याद न दो दस्तक हृदय के द्वार पर/ चाहती हूं भूल जाना दुखभरी हर बात को' और 'बदले युग में बेटियां, गढ़ती नव आयाम/ आलंबन ले ज्ञान का हरती तम अविराम' सुनाया. मुकुंदलाल साहू ने 'मैं सरगुजिहा ठंड की करूं आज क्या बात/ दिन भी अब घायल करे, कातिल लगती रात' सुनाया तो अनिता मदिलवार ने 'बीती काली रात ये नवल धवल अब भोर/ सर्दी की ऋतु बोलती पंछी करते शोर सुनाया. गीता द्विवेदी ने 'धान रखे खलिहान में, शीतलहर का जोर/ सोया वहीं किसान है, लपटें उठती भोर में' सुनाया तो डॉ सुधीर पाठक ने 'मस्ती भरे यौवन की रंगीन हैं सब गलियां' आशा पाण्डेय ने 'देख सूरत मोहिनी-सी, प्रीत करना चाहता था/ पूछता था दर्पण अकेला, बिम्ब था कोई पुराना' और भगत सिंह विहस ने 'जो जिए और मरे देश तेरे लिए/ उनकी यादों में एक दीए हैं जलते सदा, जब तलक है जमीं, जब तलक आसमां, राहें रौशन रहें, साथ चलते सदा' सुनाया. अर्चना पाठक ने 'गंगा के पावन आंचल में मिट्टी अगड़ाई लेती है/ पापों से मुक्ति दिलाकर वह निर्मल तरुणाई देती है' सुनाया तो राजलक्ष्मी पाण्डेय ने 'इन पलों से चुरा कुछ पल लिखे मैंने स्नेहिल मृदुल मुस्कान…' से अपने मनोभाव उकेरे. संचालन अनिता मंदिलवार और आभार अर्चना पाठक ने किया.