प्रयागराजः इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला के एक सत्र में बोलते हुए विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि साहित्य शब्दार्थ से संवेदना को मूर्त रूप देता है. जीवन और कविता का नजरिया भिन्न-भिन्न होता है और इसीलिए साहित्य के पुनर्पाठ की सदैव आवश्यकता बनी रहती है. जब तुलसीदास रामचरितमानस लिख रहे थे, तो यह वाल्मीकि की कविता का पुनर्पाठ था, इसी तरह जब मैथिलीशरण गुप्त साकेत लिख रहे थे, तो यह तुलसी की कविता का पुनर्पाठ था. बाद में राम की शक्तिपूजा और तुलसीदास जैसे निराला के ग्रन्थ भी पुनर्पाठ हैं. उन्होंने अनंतसिद्ध गुरु गोरखनाथ के द्वारा बताए गए कायागढ़ पर विजय पाने पर बल देते हुए कहा कि माया, ममता के चक्कर से ऊपर उठना ही मुक्ति है.
व्याख्यानमाला के दूसरे सत्र में बोलते हुए राजस्थान के उदयपुर में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नवीन नन्दवाना ने कहा कि मनोवेगों का परिष्कार और शेष सृष्टि के साथ जोड़ना ही कविता का उद्देश्य है. कविता सदैव अपने समय और समाज के सत्य को ध्यान में रखकर लिखी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि आज मनुष्यता की छाप वाली कविता की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में बाजार कविता को प्रभावित कर रहा है. स्वागत एवं धन्यवाद ज्ञापन हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रो कृपाशंकर पाण्डेय ने किया जबकि संचालन एवं संयोजन डॉ राजेश कुमार गर्ग ने किया. व्याख्यानमाला में देश के 25 राज्यों से कुल 347 नामांकन निवेदन प्राप्त हुए थे,  जिनमें 134 प्राध्यापक, 91 शोध छात्र, 122 छात्र शामिल हैं. इनमें 220 पुरुष और 127 महिलाएं शामिल रहीं.