जयपुरः जयपुर पीस फाउंडेशन की ओर से राधाकृष्णन पुस्तकालय के सभागार में पत्रकार व संपादक गोपाल शर्मा की सद्यः प्रकाशित पुस्तक 'गांधी: जयपुर सत्याग्रह' पर परिचर्चा आयोजित हुई. इस अवसर पर लेखक गोपाल शर्मा ने गांधी-सुभाष और नेहरू के संबंधों पर कई विस्फोटक खुलासे किए. उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने 23 जनवरी, 1937 को सुभाषचंद्र बोस को तार देकर उम्मीद प्रकट की थी कि भगवान उन्हें जवाहरलाल नेहरू का स्थान लेने की शक्ति प्रदान करें. इससे पहले रियासती मामलों में मतभेदों को लेकर गांधी ने सरदार पटेल से कहा था कि वे सभी नेहरू की अध्यक्षता वाली कांग्रेस कार्यसमिति से हट जाएं. उन्होंने कहा कि इस पुस्तक के लेखन के दौरान उन्हें कई तथ्य ज्ञात हुए, जैसे देश की आजादी के प्रयासों की दिशा में जहां जयपुर सशस्त्र क्रांति का गढ़ रहा, वहीं गांधीजी के सत्य और अहिंसा की प्रयोगशाला भी रहा. यहां कई क्रांतिकारियों ने शरण ली और अपनी योजनाओं को मूर्त रूप दिया. सत्य के पुजारी महात्मा गांधी ने यहां की जनता की पीड़ा को महसूस कर अहिंसात्मक आंदोलन को समर्थन दिया. शर्मा ने कहा कि गांधीजी ने जमनालाल बजाज को जयपुर के आंदोलन की कमान सौंपी थी. यही नहीं गांधीजी 1938 से 1940 तक जयपुर में हो रही हर घटना के प्रति पूरी तरह जागरूक रहे. उन दिनों यहां आंदोलन चरम पर था. गांधीजी ने जयपुर रेलवे स्टेशन पर जुटे हजारों आंदोलनकारियों से संवाद कर पूछा कि आंदोलन सत्य और अहिंसा के सिद्धांत पर हो रहा है न. हालांकि बाद में गांधीजी ने जयपुर के आंदोलनकारियों को दिल्ली बुलाकर आंदोलन स्थगित करने को कहा था. इससे लोगों को निराशा हुई, लेकिन गांधीजी ने उन्हें समझाया कि आंदोलन हमेशा सही निशाने पर होना चाहिए. एक अच्छा घुड़सवार अपने घोड़े को युद्ध के मैदान में व्यर्थ ही दौड़ाकर मार नहीं देता.
शर्मा ने दावा किया कि हरिजन में लिखे लेख, गांधीजी के वक्तव्य और तत्कालीन वायसराय से पत्र व्यवहार से गांधीजी के जयपुर आंदोलनों के प्रति जागरूक रहने के प्रमाण मिलते हैं. जयपुर पीस फाउंडेशन के अध्यक्ष नरेश दाधीच ने पुस्तक की प्रस्तावना रखते हुए आग्रह किया कि राजकोट रियासत से जुड़ी जानकारियां भी पाठकों के सामने आनी चाहिए. इतिहासकार प्रो बीके शर्मा ने प्रदेश के किसान आंदोलनों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि शेखावाटी के लोगों ने राजस्थान में विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई. यहां के सेठों ने गांधीजी के आह्वान पर उनके रचनात्मक आंदोलनों के लिए धन उपलब्ध करवाया. शेखावाटी के जाट समाज के लोगों का आंदोलन सामाजिक परिवर्तन का आधार बना. परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण चंद छाबड़ा ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा कि बहुत कुछ नया पढऩे को मिला. उन्होंने कहा कि सत्याग्रह के लिए जयपुर में कई बार जुलूस निकले थे जिनके वे स्वयं साक्षी रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र बोड़ा ने कहा कि जयपुर पर आक्षेप लगता रहा है कि गांधीजी कभी जयपुर नहीं आए, लेकिन गोपाल शर्मा की यह पुस्तक इसका खंडन करती है. परिचर्चा में शामिल बुद्धिजीवी, चिंतक एवं लेखक वर्ग ने इसे ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित खोजपरक पुस्तक बताया और कहा कि पीएचडी करने वाले विद्यार्थियों, गाइड और इतिहास में रुचि रखने वालों को इस पुस्तक का अवश्य अध्ययन करना चाहिए.