नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'मन की बात' में शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े महान व्यक्तित्वों को शिद्दत से याद किया और इससे जुड़े आंदोलनों और प्रयासों को याद किया. उन्होंने कहा कि भारत शिक्षा और ज्ञान की तपोभूमि रहा है. हमने शिक्षा को किताबी ज्ञान तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे जीवन के एक समग्र अनुभव के तौर पर देखा है. हमारे देश की महान विभूतियों का भी शिक्षा से गहरा नाता रहा है. पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने जहां बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की, वहीं महात्मा गांधी ने गुजरात विद्यापीठ के निर्माण में अहम भूमिका निभाई. गुजरात के आणंद में एक बहुत प्यारी जगह हैवल्लभ विद्यानगर. सरदार पटेल के आग्रह पर उनके दो सहयोगियों, भाई काका और भीखा भाई ने वहां युवाओं के लिए शिक्षा केंद्रों की स्थापना की. इसी तरह पश्चिम बंगाल में गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की. महाराजा गायकवाड़ भी शिक्षा के प्रबल समर्थकों में से एक थे. उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों का निर्माण करवाया और डॉ अम्बेडकर और श्री अरबिंदो समेत अनेक विभूतियों को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित किया. ऐसे ही महानुभावों की सूची में एक नाम राजा महेंद्र प्रताप सिंह का भी है. राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने एक टेक्निकल स्कूल की स्थापना के लिए अपना घर ही सौंप दिया था. उन्होंने अलीगढ़ और मथुरा में शिक्षा केंद्रों के निर्माण के लिए खूब आर्थिक मदद की . कुछ समय पहले मुझे अलीगढ़ में उनके नाम पर एक युनिवर्सिटी की आधारशिला रखने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ. मुझे खुशी है कि शिक्षा के प्रकाश को जनजन तक पहुंचाने की वही जीवंत भावना भारत में आज भी कायम है.
प्रधानमंत्री ने पूछा कि क्या आपने जानते हैं कि इस भावना की सबसे सुन्दर बात क्या है? वह ये है कि शिक्षा को लेकर ये जागरूकता समाज में हर स्तर पर दिख रही है. तमिलनाडु के त्रिप्पुर जिले के उडुमालपेट ब्लॉक में रहने वाली तायम्मल जी का उदाहरण तो बहुत ही प्रेरणादायक है. तायम्मल जी के पास अपनी कोई जमीन नहीं है. बरसों से इनका परिवार नारियल पानी बेचकर अपना गुजरबसर कर रहा है. आर्थिक स्थिति भले अच्छी ना हो लेकिन तायम्मल जी ने अपने बेटेबेटी को पढ़ाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी. उनके बच्चे चिन्नवीरमपट्टी पंचायत युनियन मिडिल क्लास में पढ़ते थे. ऐसे ही एक दिन स्कूल में अभिभावकों के साथ मीटिंग में ये बात उठी कि कक्षाओं और स्कूल की स्थिति को सुधारा जाए, स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक किया जाए. तायम्मल जी भी उस मीटिंग में थे. उन्होंने सब कुछ सुना. इसी बैठक में फिर चर्चा इन कामों के लिए पैसे की कमी पर आकर टिक गई. इसके बाद, तायम्मल जी ने जो किया, उसकी कल्पना कोई नहीं कर सकता था. जिन तायम्मल जी ने नारियल पानी बेचबेचकर कुछ पूंजी जमा की थी, उन्होंने एक लाख रुपये स्कूल के लिए दान कर दिए. वाकई, ऐसा करने के लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए, सेवाभाव चाहिए. तायम्मल जी का कहना है अभी जो स्कूल है उसमें 8वीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है. अब जब स्कूल का  इंफ्रास्ट्रक्चर सुधर जाएगा तो यहां हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई होने लगेगी. हमारे देश में शिक्षा को लेकर यह वही भावना है, जिसकी मैं चर्चा कर रहा था. मुझे आईआईटी बीएचयू के एक पूर्व छात्र के इसी तरह के दान के बारे में भी पता चला है. बीएचयू के पूर्व छात्र जय चौधरी ने आईआईटी बीएचयू फाउंडेशन को एक मिलियन डॉलर यानी करीबकरीब साढ़े सात करोड़ रुपए दान किये हैं.