नई दिल्लीः कमलाकांत त्रिपाठी की किताब 'सरयू से गंगा' इतिहास एवं सामाजिक जीवन के विस्तृत फलक पर लिखी गई एक वृहद् और महत्त्वपूर्ण औपन्यासिक कृति है. पानीपत, प्लासी, बक्सर, मुगल साम्राज्य का ह्रास, ईस्ट इंडिया कंपनी के वर्चस्व में सतत् विस्तार और नेपाल के एकीकरण की प्रक्रिया की पृष्ठभूमि में लेखक ने मालगुजारी, ठेकेदारी, तालुकेदारी, किसानी और खेती को उपन्यास का विषय बनाया है. यह उपन्यास की देशज भाषा के सौन्दर्य को रेखांकित करता है और अवधी की छौंक से सुगन्धित है. कथाकार संजीव सहित कई साहित्यकारों ने ऐसी ही बातें 'सरयू से गंगा' पर मुरली मनोहर प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में आयोजित परिचर्चा में कहीं. इस परिचर्चा में कर्ण सिंह चौहान, असग़र वजाहत, कैलाश नारायण तिवारी, बली सिंह, संजीव कुमार, राकेश तिवारी एवं अमित धर्म सिंह ने भाग लिया. अभिषेक शुक्ल ने संचालन किया. मित धर्म सिंह ने उपन्यास को इतिहास, समाज और जीवन के तीन भिन्न सन्दर्भों में बांटकर देखा. पत्रकार एवं लेखक राकेश तिवारी ने उपन्यास में धार्मिक आडम्बर के रूप में महामृत्युंजय जप के प्रसंग का जिक्र करते हुए इसे मूलतः ग्रामीण किसान और मजदूर वर्ग का उपन्यास बताया.
मुख्य अतिथि प्रो नित्यानंद तिवारी ने कहा कि उपन्यास इतिहास की धारा को सही ढंग से उभारता है.अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने उपन्यास को इतिहास की प्रक्रिया से उपजे उस संकट के मर्म को खोलने वाला बताया जिसमें व्यापारी बनकर आए अंग्रेज राजसत्ता पर काबिज होते हैं. आलोचक बली सिंह ने कहा, नवाबों और कंपनी के बीच की संधि आज भी सरकार और पूंजीपति की संधि के रूप में कायम है, जिसका खामियाजा किसान जनता को बेराजगारी, भुखमरी और आत्महत्या के रूप में भुगतना पड़ता है. आलोचना पत्रिका के संपादक संजीव कुमार ने उपन्यास कथा के दो उज्वल पक्षों- धर्मनिरपेक्षता एवं जनपक्षधरता- का नोटिस लिया. कैलाश नारायण तिवारी ने लेखकीय स्वायत्तता और स्वतंत्रता का मुद्दा उठाते हुए कहा कि कमलाकांत ने अपने इस उपन्यास में इतिहास के वृहत्तर फलक के दायरे में लेखीपति, जमील, रज्जाक, सावित्री जैसे पात्रों की परिस्थितियों के अनुरूप उनके मनोभावों और सूक्ष्म संवेदना का उन्मुक्त खाका खींचा है. कर्ण सिंह चौहान ने कहा कि कोई भी कृति हमारे सामने संवाद के लिए होती है और यह उपन्यास हमारे सामने ढेरों संवाद प्रस्तुत करता है. असग़र वजाहत ने बताया कि उपन्यास भूत, वर्तमान और भविष्य में विचरण करते हुए अवध प्रदेश की सामंती व्यवस्था के उपनिदेशवादी व्यवस्था में अंतरण की कथा कहता है.परिचर्चा के समापन के पूर्व अनुपम भट्ट ने प्रतिष्ठित दक्षिण भारतीय लेखक टी.आर. भटट् द्वारा भेजा गया संदेश पढ़कर सुनाया, जिसमें उन्होंने कमलाकांत त्रिपाठी को दक्षिण भारत के एस.एल. भैरप्पा के समकक्ष बताया.