नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने दिल्ली में तीन दिवसीय तमिळ-कश्मीरी अनुवाद कार्यशाला का आयोजन किया. कार्यशाला में 19 तमिळ कहानियों का कश्मीरी में अनुवाद किया गया. कार्यशाला के संयोजक प्रख्यात कश्मीरी लेखक और कश्मीरी परामर्श मंडल के संयोजक डा अज़ीज़ हाजिनी थे. हाजिनी ने कहा कि कश्मीरी पाठकों को पहली बार तमिळ कहानियों द्वारा दक्षिण भारत के साहित्य और संस्कृति को समझने का मौका मिलेगा. प्रख्यात तमिळ लेखक सिर्पी बालसुब्रहमण्यम इस कार्यशाला में विशेषज्ञ के तौर पर उपस्थित थे. उन्होंने कहा कि अनुवादकों ने मुख्यतः पारिवारिक संबंधों से संबंधित शब्दावली को समझने के लिए मेरा सहयोग लिया. उनका कहना था कि कोई भी अनुवाद केवल शब्दों का अनुवाद नहीं होता बल्कि वहां की संस्कृति भी अनुवाद में परिलक्षित होती है. इस अनुवाद कार्यशाला में प्रतिभागी अनुवादक थे, प्रो एजाज़ मो शेख, मुश्ताक़ अहमद मुश्ताक़, फ़ारूख़ फ़ैयाज़, अमीन फ़ैयाजी़, गौरीशंकर रैना, अंजलि अदा कौल.

साहित्य अकादमी द्वारा मुश्ताक़ अहमद मुश्ताक के संपादन में ये सभी कहानियां शीघ्र पुस्तकाकार प्रकाशित की जाएंगी। उन्होंने बताया कि सभी कहानियां बेहद रोचक थीं और इससे केवल हमें ही नहीं बल्कि कश्मीरी साहित्यकारों और पाठकों को भी तमिळ साहित्य और संस्कृति को बेहतर तरीके से जानने का मौका मिलेगा. पहले दिन उद्घाटन वक्तव्य में डॉ अज़ीज़ हाजिनी ने कहा था कि भारतीय भाषाओं में परस्पर अनुवाद साहित्य अकादमी का प्रमुख कार्य हैं. लेकिन सुदूर दक्षिण भारत और दूसरे कोने में स्थित कश्मीरी भाषा के बीच यह अपनी तरह की पहली कार्यशाला है. अनुवादकों एवं विशेषज्ञ का स्वागत करते हुए साहित्य अकादेमी के उपसचिव, प्रशासन डॉ एस. राजमोहन ने कहा था कि एक भारत श्रेष्ठ भारतयोजना के अंतर्गत यह पहली कार्यशाला है. तीन दिन तक चली इस कार्यशाला के अंत में धन्यवाद ज्ञापन साहित्य अकादमी के संपादक, हिंदी अनुपम तिवारी ने किया.