भोपालः केन्या के राष्ट्रपति केन्याटा ने कहा था,'जब पादरी हमारे देश में आए, तो उनके हाथों में बाइबिल के सिवा कुछ नहीं था. उन्होंने हमारे देशवासियों को आंखें मूंदकर ईश्वर का ध्यान करने के लिए कहा. जब हमने,उनकी बात मान कर, ईश्वर प्रार्थना करने के लिए आंखें मूंद लीं, तो इतने में ही सब कुछ बदल गया, हमारी आंखें खुलीं तो हमने देखा कि बाइबिल हमारे हाथ में आ गई है और केन्या की धरती पर ईसाई मिशनरियों का कब्जा हो गया है.' अपनी पुस्तक 'छत्तीसगढ़: इतिहास और संस्कृति' में डॉ संजय अलंग ने यह बात बहुत खुलकर लिखी है. एक कुशल कर्मठ प्रशासक के रूप में अपनी छाप छोड़ने वाले बिलासपुर के जिलाधिकारी डॉ संजय अलंग एक गम्भीर किस्म के शोधार्थी लेखक भी हैं और समकालीन कविता संसार के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर कवि भी, जिनकी कविताओं में छत्तीसगढ़ का लोक और जीवन धड़कता है. छत्तीसगढ़ के इतिहास और संस्कृति के गहन अध्येता और इतिहासकार के रूप में भी उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है.
संजय अलंग का लेखकीय कौशल उनकी पुस्तक 'छत्तीसगढ़: इतिहास और संस्कृति' से तो दिखता ही है, इस किताब में उनका कवि और इतिहासकार भी झांकता है. किताब के आमुख में एक कविता है, जिससे अपने समय और समाज के एक सुचिंतित कवि की इतिहास दृष्टि झांकती है. उस कविता की कुछ पंक्तियां यों हैंः

"मेरे इतिहास में सभी लोग सम्मिलित हो जाते हैं
इस इतिहास में युद्ध, धर्म, नफरत, गोली नहीं है
यह अकेले राजा का इतिहास भी नहीं है
वह राजा, जिसका इतिहास सब लिख रहे हैं
उसके इतिहास में न मैं हूं ,न तुम
बन और बिगड़ हम ही रहे हैं और
नाम बार-बार राजा का आ रहा है.

इसमें न तो पगडंडी है,
न बेर, न जंगल, न पानी, न औरतें
अवधि, वर्ष, काल, तलवार, युद्ध, सत्ता, इमारतें
और न जाने क्या-क्या भर पड़ा है
न संवाद, न खेल, न तान, न मांदर, न करमा, न बेटी

(उस) इतिहास में निर्मम अंक ही अंक
और आंकड़े ही आंकड़े भरे हैं
साल, हत्या, युद्ध, विजय गिने जा रहे हैं
कहीं-कहीं तो कब्रें भी
चमड़ी छिले तन और मन के साथ…"