नई दिल्लीः बंगला में ऋतुपर्णो घोष की एक फिल्म आई थी  'चोखेर बाली'. हिंदी के वरिष्ठ कहानीकार राजेंद्र राव की एक कहानी भी हंस पत्रिका के मार्च 2006 अंक में इसी नाम से प्रकाशित हुई, और खूब चर्चित हुई. अब वह कहानी रंगमंच पर भी काफी धमाल मचा रही है.  राव लंबे समय से कहानियां लिख रहे हैं। जनवादी कहानियों के दौर में प्रेम जैसे विषय पर कहानी लेखन का जोखिम काफी साहसपूर्ण था. कहानी का नायक  विशु प्रेम में अपने विश्वास को रचनात्मक कसौटी पर कसे जाने का पूरा मौका उपलब्ध कराता है. कथा के संदर्भ में, जब नायक को अपना प्रेम अभिव्यक्त करने में ही संकोच हो रहा हो तो दैहिक ताप पर नियंत्रण खुद-ब-खुद संभव हो जाता है.

 पाठ के स्तर पर हम यथार्थ के बरक्स गल्प को बेहतर मानते हैं लेकिन गल्प के स्तर पर भी कहानीकार दैहिक छूट नहीं लेता, ऐंद्रिक भाव और संवेदनाएं दिलों के पिंजरों में बंद रहते हैं. ऐसे मनोभावों को रंगमंच पर उतारना काफी चुनौतिपूर्ण काम है. संभवतः इसीलिए चोखेर बाली के मंचन पर राव खुद फेसबुक पर उसकी तस्वीरें पोस्ट करते हुए लिखते हैंकोलकाता मेरे दिल के बहुत करीब है, दक्षिणेश्वर का गंगा घाट भी. शायद इसीलिए चोखेर बाली कहानी लिखी गई. यह कहानी, वस्तुत; कहानी न होते हुए भी कहानी ही है. जब काफी अनुभवी और संजीदा रंगकर्मी टीकम जोशी ने कहा कि वे इसके नाट्य रूप को रंग महोत्सव में मंचित करना चाहते हैं तो मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि उस दृष्टि से यह बहुत मुश्किल रचना है. परंतु उन्होंने यह कर दिखाया.