लखनऊ: “गुलज़ार चांद को नए तरीके से देखते हैं. कभी रोटी के रूप में तो कभी थाली के तौर पर. कभी चलते हुए पहिए के रूप में. उन्होंने सूरज पर भी लिखा है, लेकिन चांद को विशेष और रोमांटिक तरीके से प्रस्तुत किया है.” यह बात भारतेंदु नाट्य अकादमी में संवादी के दूसरे दिन पहले सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार यतीन्द्र मिश्र की पुस्तक ‘गुलज़ार सा‘ब‘ पर विमर्श करते हुए दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय से सलीम आरिफ ने कही. इस संवाद का निष्कर्ष था कि सिनेमा कभी साहित्य नहीं हो सकता, क्योंकि जिस चीज को लेकर सिनेमा रचा गया था, उसकी नींव में साहित्य है. साहित्य वास्तविक है तो सिनेमा आभास. सिनेमा सात जन्म लेगा तो भी साहित्य के बराबर नहीं पहुंच पाएगा. इसलिए साहित्य की अमरता कभी झुठलाई नहीं जा सकती. अगर विषय गुलज़ार साहब पर हो तो साहित्य और सिनेमा की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. की यात्रा शुरू हुई. इस रोमांचक सफर का अंत उतना ही दिलचस्प रहा, जितना कि आरंभ. इस पुस्तक में मीना कुमारी हैं या नहीं? के उत्तर में यतीन्द्र ने कहा कि जब मैंने लताजी पर काम किया तो मुझसे पूछा गया कि उनका इश्क कहां है तो मैंने कहा कि लताजी 88 साल की हैं और मैं 35 का. दादी-पोते के बीच का अंतर है. मैं अपनी दादी से नहीं पूछ सकता कि किससे इश्क लड़ाया. यह कहकर मैं निकल लेता था. गुलज़ार साहब अब 90 के हैं और मैं 47 वर्ष का. यहां भी दादा-पोते जैसा रिश्ता है. जैसा इश्क फिल्मी गासिप मैगजीन में देखा जाता है वैसा तो मैंने कभी किसी से नहीं पूछा. मीना कुमारी के काम और उनके शायरी के जुनून को लेकर मैंने बात की, वो सब इसमें मौजूद है.
अनंत विजय ने चर्चा मीना कुमारी पर ही केंद्रित रखते हुए सलीम से पूछा कि मीना कुमारी से गुलज़ार के क्या रिश्ते थे? और बेटे से बाप के इश्क के किस्से नहीं पूछे जाते… यह कहकर टालिएगा नहीं. सलीम मुस्कुराए और कहा, मोहब्बत और इज्जत का रिश्ता महसूस होता है दोनों में. अनंत फिर यतीन्द्र से मुखातिब हुए. सवाल किया- 15-16 साल लग गए इस किताब को आने में, आखिर ऐसा कौन सा हीरा मोती जड़ा है इसमें? यतीन्द्र ने बड़ी साफगोई से जवाब दिया, यह कोई महानता नहीं है. आलस्य का परिचायक है. मैं गुलज़ार साहब पर काम कर रहा था, बीच में लताजी आ गईं तो यह काम स्थगित कर दिया. अनंत का अगला सवाल और भी रोचक था कि आप किसी चिट्ठी का जिक्र कर रहे थे, जिसमें गुलज़ार ने कहा है कि आपने उनका तेल निकाल लिया. यह कौन सा तेल था? यतीन्द्र ने गुलज़ार के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए विशाल भारद्वाज से लेकर सलीम तक से उनके रिश्ते को बयां किया. यह बताया कि किस तरह गुलज़ार ने हेमा मालिनी और जितेंद्र सरीखे कलाकारों को गढ़ा है. यह सब इस किताब में है. गुलज़ार जैसा कवि अपनी पुस्तक के पीछे केदारनाथ सिंह के सम्मति को कोट करवाता है, इस आश्चर्य से आवरण यतीन्द्र के साथ ही सलीम ने भी हटाया. दोनों का मंतव्य साफ था- गुलज़ार मराठी, हिंदी, उर्दू सभी भाषाओं के कवियों को बहुत इज्जत देते हैं. चांद से गुलज़ार का क्या लगाव है? के उत्तर में सलीम ने कहा कि यतीन्द्र ने इससे सहमति जताते हुए कहा कि गुलज़ार रिश्तों से इश्क करते हैं. वह आवाज को पहन लेते हैं और रूह का कपड़ा उतार देते हैं.