लखनऊ: अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में आयोजित ‘किताब उत्सव‘ के दौरान उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन से उनकी पुस्तक ‘जिलाधिकारी‘ पर अशोक शर्मा ने बातचीत की. रंजन ने कहा कि जिलाधिकारी का पद बहुत ही महत्त्वपूर्ण पद है. ए एक तरीके से कोलोनियल इंडिया की देन है जो अभी तक चला आ रहा है. आज इसके कर्तव्य और जिम्मेदारियों में बहुत सारे बदलाव आए हैं पर अभी भी यह जिले में एक केंद्रीय भूमिका में होता है. यह अलग बात है कि हम एक लोकतांत्रिक राज्य में रहते हैंइसलिए जिलाधिकारी को जन-प्रतिनिधियों और जन आकांक्षाओं के प्रति भी पूरी तरह से जिम्मेदार होना होता है. अभी उसकी भूमिका एक समन्वयक की है. जहां उसे दूसरी तमाम इकाइयों और निकायों के बीच समन्वय और संतुलन बनाकर चलना पड़ता है.

राजनीतिक हस्तक्षेप के सवाल पर रंजन ने कहा कि आपको जानना चाहिए कि वे जनता के प्रतिनिधि हैं. जनता की आवाज उनके ही रास्ते प्रशासन तक पहुंचती है. मैं इसे गलत नहीं मानता क्योंकि लोकतंत्र में हमें इस तरह के दबावों के लिए तैयार रहना चाहिए. हां जब ए बहुत ज्यादा बढ़ जाए तो जरूर एक मुश्किल स्थिति है. इस सत्र का संचालन सुरभि श्रीवास्तव ने किया. उत्सव के अगले सत्र में वरिष्ठ कथाकार वीरेंद्र सारंग से चर्चित पत्रकार संतोष वाल्मीकि ने उनके उपन्यास ‘हाता रहीम‘ पर बातचीत की. सारंग ने कहा कि मेरी जानकारी में ‘हाता रहीम‘ जनगणना को केंद्र में रखकर लिखा गया पहला उपन्यास है. यह यथार्थ के इतना नजदीक है कि इसमें कल्पना के लिए ज्यादा अवकाश नहीं था. जनगणना फार्म के जो चैप्टर थे वे सब बाद में उपन्यास के ‘उपशीर्षक‘ बन गए. वाल्मीकि ने कहा कि वीरेंद्र सारंग गए तो थे जनगणना के लिए पर एक जिम्मेदार सरकारी अधिकारी के रूप में जब वे गावों में पहुंचे तो लोगों ने उनसे बहुत सारी उम्मीदें पाल लीं. इन्हीं उम्मीदों ने संभवतः उनके भीतर उपन्यास का सृजन किया होगा.