नई दिल्ली: “मानवाधिकार दिवस का उत्सव संयुक्त राष्ट्र सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा में निहित आदर्शों पर विचार करने और एक ऐसे विश्व के निर्माण में योगदान देने के हमारे सामूहिक संकल्प की पुष्टि करने का अवसर प्रदान करता है जहां न्याय और मानवीय गरिमा समाज का आधार हैं.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि यह बात कही. उन्होंने कहा कि मानवाधिकार के क्षेत्र में भारत आज एक शानदार उदाहरण के रूप में खड़ा है, जहां सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन, वंचितों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराकर भूख मिटाने और युवाओं को अपने सपने साकार करने के लिए समान अवसर प्रदान करने के लिए बड़ी पहल की जा रही है. सरकार सभी के लिए आवास, स्वच्छ पेयजल, बेहतर स्वच्छता, बिजली, रसोई गैस और वित्तीय सेवाओं से लेकर स्वास्थ्य सेवा तथा शिक्षा तक कई सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की गारंटी भी देती है. यह बात महत्त्वपूर्ण है कि बुनियादी आवश्यकताओं के प्रावधान को एक अधिकार के रूप में देखा जाता है. राष्ट्रपति मुर्मु ने मानवाधिकार उल्लंघनों से निपटने, जागरूकता बढ़ाने और हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए नीतिगत बदलावों की सिफारिश करने में नागरिक समाज, मानवाधिकार रक्षकों, विशेष प्रतिवेदकों और विशेष निगरानीकर्ताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग की सराहना की.
भविष्य में उभरती चुनौतियों का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि साइबर अपराध और जलवायु परिवर्तन मानवाधिकारों के लिए नए खतरे हैं. डिजिटल युग परिवर्तनकारी होने के साथ-साथ अपने साथ साइबरबुलिंग, डीपफेक, निजता संबंधी चिंताएं और गलत सूचना के प्रसार जैसे जटिल मुद्दे भी लेकर आया है. ये चुनौतियां एक सुरक्षित, संरक्षित और न्यायसंगत डिजिटल वातावरण को बढ़ावा देने के महत्त्व पर जोर देती हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों के साथ-साथ उनके सम्मान की रक्षा करता है. उन्होंने यह भी कहा कि कृत्रिम बौद्धिकता ‘एआई’ अब हमारे दैनिक जीवन में प्रवेश कर चुका है, जो कई समस्याओं का समाधान कर रहा है और कई नई समस्याएं भी पैदा कर रहा है. राष्ट्रपति ने कहा कि मानवाधिकारों पर अब तक की चर्चा मानव एजेंसी पर केंद्रित रही है, यानी उल्लंघनकर्ता को एक इंसान माना जाता है, जिसमें करुणा और अपराधबोध जैसी कई मानवीय भावनाएं होती हैं. हालांकि, एआई के साथ, अपराधी एक गैर-मानव लेकिन बुद्धिमान एजेंट हो सकता है. इस पर विचार करने की जरूरत है. राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में 2022 तक बुजुर्गों की आबादी लगभग 150 मिलियन हो जाएगी तथा अनुमान है कि 2050 तक यह 350 मिलियन तक पहुंच जाएगी. यह जरूरी है कि हम ऐसी नीतियां बनाएं तथा ऐसे उपाय करें जिनसे उनकी गरिमा बनी रहे तथा उनका कल्याण सुनिश्चित हो तथा वे हमारे समाज के मूल्यवान सदस्य के रूप में पूर्ण जीवन जीने के लिए सशक्त बनें.