नई दिल्लीः दैनिक जागरण ने ‘हिंदी हैं हम‘ अभियान के तहत ‘हिंदी दिवस‘ पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में जागरण ‘संवादी‘ का आयोजन किया तो उद्घाटन सत्र के पश्चातजिस विषय पर चर्चा हुईवह था ‘साहित्य और दिल्ली‘. इस सत्र के प्रमुख वक्ता थे लेखक व दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति प्रो सुधीश पचौरीलेखक व रेलवे बोर्ड के पूर्व संयुक्त सचिव प्रेमपाल शर्मा और साहित्य अकादेमी से सम्मानित बाल साहित्यकार दिविक रमेश. पचौरी ने हिंदी के नाम का रोना रोने वालों पर निशाना साधते हुए कहा कि लोग हिंदी के नाम पर खाते-कमाते हैंपर रोना नहीं छोड़ते.  वे दिन चले गए. अब हिंदी का मिजाज अब रोने वाला नहीं है. हिंदी ऐसे ही संवाद की भाषा नहीं बनी है. अब तो हकीकत यह है कि अंग्रेजी में भी वाद-विवाद करने वाले जब उलझते हैं तो हिंदी बोलने लगते हैं. प्रो पचौरी ने कहा कि दिल्ली को हिंदी का बालीवुड कहा जा सकता है. यह हिंदी का मक्का मदीना है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हिंदी प्रेम की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने इतनी हिंदी बोली है कि लोग न चाहते हुए भी हिंदी बोलने लगे हैं. उन्होंने हिंदी को अपनाने पर बल देते हुए कहा कि यह जगाने वाली होनी चाहिएसुलाने वाली नहीं.

सत्र में लेखक व रेलवे बोर्ड के पूर्व संयुक्त सचिव प्रेमपाल शर्मा का कहना था कि पिछले नौ वर्षों में हिंदी का प्रचार-प्रसार फिर से बढ़ा है. केंद्र में 2014 में नई सरकार आई तो उसने हिंदी के कल्याण के लिए कई काम शुरू किए. यूजीसी ने भी कई कदम उठाए. आज कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां दसवीं तक हिंदी नहीं पढ़ाई जा रही हो. लेकिन दिल्ली की हिंदी अकादमी को भी अपनी भूमिका पर ध्यान देना चाहिए. उसे देखना चाहिए कि कितने स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जा रही है. शर्मा ने इस बात पर बल दिया कि न केवल दसवीं तक हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाना चाहिएबल्कि पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी ही हो. साहित्य अकादेमी से सम्मानित बाल साहित्यकार दिविक रमेश ने भाषा की तुलना मां से की और कहा कि हर भाषा का सम्मान होना चाहिए. हिंदी अपनी मां हैपर दूसरी भाषाएं भी तो किसी की मां हैंतो उनसे भी नफरत नहीं होनी चाहिए. उन्होंने दिल्ली को साहित्यिक दृष्टि से सौभाग्यशाली बताते हुए मोहनसिंह पैलेस और सेंट्रल पार्क में लगने वाले साहित्यिक जमावड़े को याद किया. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालयजवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के साहित्यिक वातावरण का उल्लेख करते हुए कहा कि यहीं नामवर सिंहरामदरश मिश्रकेदारनाथ सिंहसुधीश पचौरीनिर्मला जैनअसगर वजाहत जैसे अनेक साहित्यकार थे. जनवादी लेखक संघ और आथर्स गिल्ड सहित विभिन्न संगठन भी यहीं बने.