गुलजार साब
गुलजार की ‘आंधी’ ने भी झेला था आपातकाल का वार
-लेखक यतींद्र मिश्र ने गीतकार, लेखक, फिल्मकार गुलजार के जीवन के विविध पहलुओं को छुआ
केदार दत्त, जागरण
देहरादून: प्रसिद्ध गीतकार, लेखक, अभिनेता, फिल्म निर्माता, निर्देशक गुलजार की चर्चित फिल्म ‘आंधी’ भी आपातकाल की बंदिशों से रूबरू हुई थी। जब यह फिल्म रिलीज होनी थी, तब इस पर प्रतिबंध की बात होने लगी। इस पर किसी ने गुलजार साब को राय दी कि वे इस बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलें। बाद में उन्हें यह सुझाव दिया गया कि फिल्म में यह दृश्य डाला जाए कि इंदिरा गांधी का चित्र दिखाते हुए फिल्म की नायिका आरती देवी यह कहें कि वह राजनीति में जाकर इनकी तरह बनना चाहती हैं। फिर फिल्म में यह दृश्य जोड़ा गया और फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। गुलजार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से जुड़े से ऐसे विविध पहलुओं पर लेखक व कवि यतींद्र मिश्र ने विस्तार से प्रकाश डाला। मिश्र ने गुलजार की बायोग्राफी लिखी है। अवसर था देहरादून में आयोजित दैनिक जागरण के संवादी के तीसरे सत्र ‘गुलजार साब’ का। यतींद्र मिश्र से संवाद किया उपन्यासकार अद्वैता काला ने। मिश्र यह भी बताते हैं कि यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में कांग्रेस ने जब गुलजार को अवार्ड दिया तो उनके द्वारा कहा भी गया कि एक दौर में कांग्रेस ने ही उनकी फिल्म पर बैन लगाने की सोची थी और अब अवार्ड। इस पर कांग्रेस ने कहा कि वह भूल सुधार करना चाहती है।
एक घंटे तक चले संवाद के इस सत्र की शुरुआत में अद्वैता पूछती हैं कि गुलजार साब जैसे भारी भरकम व्यक्तित्व की बायोग्राफी लिखना काफी मुश्किल रहा होगा। बेहद सादगी से जवाब देते हुए यतींद्र कहते हैं, काफी कठिन तो होता है। उनके सामने भी चुनौती थी। उन्होंने गुलजार के साथ 20 साल बिताए और तब जाकर उनकी बायोग्राफी गुलजार साब आई। तब गुलजार ने अपनी निजी जिंदगी पर भी खुलकर बात की, लेकिन कुछ पहलुओं को बायोग्राफी में लिखने से मना किया। उनका जीवन दर्शन बताता है कि संघर्षाें से तपकर कुंदन किस तरह निखरकर सामने आता है। मिश्र बताते हैं कि गुलजार साब कविता, कहानी की पुस्तकें जमा करते थे तो पिता नाराज होते थे, लेकिन जब गुलजार की नज्में, कहानी अखबार में छपती थीं तो उसे सीने से लगाकर रखते थे। यह बड़ी उपलिब्ध थी कि पिता खुश होते थे। उन्होंने प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर का भी उल्लेख किया कि वह भी अक्सर अपने पिता को याद करके रोने लगती थीं। मिश्र तब भावुक हो गए, जब उन्होंने अपनी माता का उल्लेख किया और बोले कि माता के जाने के बाद सबकुछ बेमानी लगता है। उन्होंने गुलजार के मोटर वर्कशाप में काम करने से लेकर अब तक के सफर पर भी विस्तार से राेशनी डाली।
रिश्तों के टूटने, छीजने की कहानी कहता है टूटा घर
अद्धैता के प्रश्न के उत्तर में मिश्र कहते हैं कि गुलजार के जीवन में हर पहलू है। गुलजार निर्देशित प्रत्येक फिल्म में टूटा घर अवश्य होता है। यह रिश्तों के टूटने, छीजने की कहानी कहता है। हर फिल्म में मुकम्मल रिश्ता भी है, जिसमें वह अपना जीवन जीते हैं। उन्होंने कहा कि जो जज्बाती होता है और दिमाग चलेगा तो लिखेगा ही। एक तरफ दिल, दिमाग व जज्बात हैं, इनमें कोई किसी को भी लागू करें तो वह अंदर की बात कहता है। जब तक जज्बात को महसूस नहीं करेंगे, तब तक इसे व्यक्त नहीं कर सकते। इस क्रम में वह गुलजार के तमाम गीतों का उल्लेख करते हैं।
जिसने विभाजन को देखा भूलता नहीं है
मिश्र बताते हैं कि गुलजार भी विभाजन के बाद दिल्ली आए गए थे, तब वह मात्र आठ साल के थे। ऐसे में विभाजन का प्रभाव बालमन पर पड़ना स्वाभाविक था। विभाजन का दर्द हाेता है। यद्यपि, जब कोई बड़ा मुकाम हासिल करता है तो वह इस ऊहापोह से निकलता है। वह भी कहते हैं कि जिसने विभाजन देखा है, उसे भूलता नहीं है। वह आज की पीढ़ी को भी सचेत करते हैं कि वह अपनी कविता करे। एआइ से संबंधित प्रश्न के उत्तर में वह कहते हैं कि मशीन कभी आत्मा नहीं हो सकती। कहा कि एआइ में किसी की आवाज बनना ठीक ऐसे ही है, जैसे कुछ वर्ष पूर्व लैंडलाइन फोन के स्पीकर पर रुमाल रखकर आवाज बदला करते थे।