नई दिल्ली: राजधानी के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सम्मुख सभागार में मिथिला महोत्सव में बाबा नागार्जुन के जीवन और उनके साहित्य पर परिचर्चा आयोजित हुई. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, मैथिली-भोजपुरी अकादमी और मैथिल पत्रकार ग्रुप द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में साहित्यकारों, पत्रकारों और राजनीतिक नेताओं ने बाबा नागार्जुन की साहित्यिक धरोहर और समाज में उनके योगदान पर अपने विचार साझा किए. इस अवसर पर नागार्जुन की कविताओं का पाठ किया गया. वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार झा, नरेंद्र नाथ, रहमतुल्लाह, काजल लाल, संजीव सिन्हा, प्रतिभा ज्योति, सुजीत ठाकुर, क्रांति संभव, सुभाष चंद्र, रोशन कुमार और स्कूली छात्रा प्रत्यूषा ने भागीदारी की. इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी प्रकाश झा ने भी बाबा नागार्जुन की कविताओं को अपनी विशेष प्रस्तुति से जीवंत किया. परिचर्चा में नरेंद्रनाथ, सुजीत ठाकुर, सुभाष चंद्र, रहमतुल्लाह और रौशन झा ने शिरकत करते हुए बाबा नागार्जुन की जीवनी पर चर्चा की. वक्ताओं ने बाबा नागार्जुन की साहित्यिक और समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण और लेखन के विविध पहलुओं पर विचार साझा किए. कार्यक्रम के दौरान साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त महेंद्र मलांगिया और मैथिली भोजपुरी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष नीरज पाठक को सम्मानित किया गया. इस अवसर पर रौशन झा द्वारा लिखित और प्रकाश झा द्वारा निर्देशित बाबा नागार्जुन की जीवनी पर आधारित नाटक का शानदार मंचन हुआ. कार्यक्रम में भाजपा नेता संजय मयूख और कांग्रेस नेता प्रणव झा ने भी बाबा नागार्जुन पर अपने विचार साझा किए. दोनों नेताओं ने मिथिला और पूर्वाञ्चल की सांस्कृतिक धरोहर और भाषा को बढ़ावा देने की बात की. उन्होंने इस क्षेत्र की संस्कृति को संरक्षित करने के महत्त्व पर बल दिया और कहा कि बाबा नागार्जुन की साहित्यिक धरोहर से नई पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है.

आयोजकों की ओर से संतोष ठाकुर ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि मिथिला और मैथिली को बढ़ावा देने के लिए हम साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, ताकि समाज में जागरूकता बढ़ सके. याद रहे कि बाबा नागार्जुन का साहित्य विशेष रूप से समाज के विभिन्न पहलुओं, खासकर पिछड़े और दबे-कुचले वर्गों की समस्याओं पर केंद्रित था. उनकी कविताओं और रचनाओं में समाज की गहरी संवेदनाएं और सशक्त आवाज़ सुनाई देती है. बाबा नागार्जुन ने अपने लेखन के माध्यम से न केवल समाज के शोषित वर्ग की पीड़ा को उजागर किया, बल्कि उन्हें न्याय दिलाने के लिए भी आवाज़ उठाई. उनका काव्य संसार आम आदमी की जिंदगी, उसकी परेशानियों, संघर्षों, उम्मीदों और उसके सपनों से गहरे रूप में जुड़ा हुआ है. बाबा नागार्जुन की रचनाएं समाज की बुराइयों, असमानताओं और मानवीय संवेदनाओं की गहरी छाया को दर्शाती हैं. उनके प्रमुख संग्रहों में युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, प्यासी पथराई आंखें, तालाब की मछलियां, तुमने कहा था, हजार-हजार बांहों वाली और पुरानी जूतियों का कोरस जैसी काव्य-रचनाएं शामिल हैं. जिन्होंने समाज में बदलाव की चेतना पैदा की. इसके अलावा, भस्मांकुर और भूमिजा जैसी प्रबंध काव्य-रचनाएं भी बाबा नागार्जुन के साहित्यिक योगदान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. उनके उपन्यास जैसे रतिनाथ की चाची, बलचनमा, नयी पौध और गरीबदास उनके समाजवादी दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हैं, जबकि हिमालय की बेटियां जैसे निबंधों ने उनके विचारों को और भी स्पष्ट किया.