नई दिल्लीः कोविड-19 के इस दौर में किताबों की दुनिया में विरासत के संरक्षण की एक कोशिश राजकमल प्रकाशन ने की है. इस समूह ने कथा सम्राट प्रेमचंद के छोटे बेटे अमृतराय द्वारा 1948 में शुरू किए गए हंस प्रकाशन को अपने साथ जोड़ लिया है. राजकमल ने प्रेमचंद की 140वीं जयंती पर इस आशय की घोषणा की और यह दावा किया कि इन दोनों प्रकाशनों की प्रकाशन-नीति की बुनियाद प्रगतिशीलता रही है. ऐसे में यह ख़बर हिंदी के प्रबुद्ध समाज के लिए सुकून की ख़बर है कि एक महान विरासत वाला प्रकाशन इतिहास का एक विगत अध्याय बनते-बनते पुन: भविष्य के रास्ते पर लौट आया है. याद रहे कि अमृतराय ने हंस प्रकाशन से प्रेमचंद के संपूर्ण साहित्य के साथ-साथ सुभद्रा कुमारी चौहान (समग्र लेखन), कृश्न चंदर, पाकिस्तान के मशहूर नाटककार इम्तियाज़ अली 'ताज' (बेहद लोकप्रिय कृति 'चचा छक्कन'), गिरिजाकुमार माथुर, केदारनाथ सिंह, सुधा चौहान जैसे लेखकों को प्रकाशित किया था. इसके अलावा इस प्रकाशन से शेक्सपियर, हार्वर्ड फ़ास्ट, जॉन रीड, जूलियस फ़्यूचिक और बर्तोल्त ब्रेख़्त की महत्त्वपूर्ण कृतियों के सुंदर अनुवाद भी प्रकाशित हुए. बाद के दिनों में अरुंधति रॉय की भी एक किताब आलोक राय के अनुवाद में यहाँ से प्रकाशित हुई.
हंस प्रकाशन के राजकमल प्रकाशन समहू में विलय की घटना पर अमृतराय के पुत्र और आलोचक-लेखक आलोक राय ने कहा कि सन 1948 में जब अमृतराय ने हंस प्रकाशन की स्थापना की तो उनकी उम्र कुल सत्ताइस वर्ष थी. रगों में आंदोलन की गर्मी थी, आँखों में इंक़लाब का सपना था. हाँ, व्यावसायिकता थोड़ी कमी जरूर थी, सो उसकी पूर्ति प्रेमचंद के कॉपीराइट ने करी. और यूँ, कोई चालीस-पचास साल में, हंस प्रकाशन ने अपनी एक पहचान बना ली. प्रामाणिक पाठ, दाम सामान्य पाठकोचित. 1986 में एक धक्का ज़रूर लगा, लेकिन फिर भी दस साल तक, मेरे माँ-बाप ने हंस प्रकाशन को चलाया, लेकिन उनका ये स्पष्ट मत था कि इसको चलाना हमारे बस का नहीं, सो ठीक ही समझा था…उनके जाने के बाद कई साल व्यवसाय ढलान पर था. पुराने लोगों के सहारे चलता रहा, महेन्द्र पाल सिंह, ननकू लाल पाल, फिर एक-एक कर वे भी नहीं रहे. अब राजकमल प्रकाशन समूह में शामिल होकर, उम्मीद यही है कि हम हंस प्रकाशन को इस नए रूप में जीवित रख सकेंगे, और फिर से फलते-फूलते देखेंगे. राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी का कहना है, “हाल के वर्षों में हमने हिंदी प्रकाशनों की विविधतापूर्ण विरासत को सहेजने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए हैं. यह विलय उसी दिशा में बढ़ा एक और कदम है. राजकमल प्रकाशन समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आमोद महेश्वरी ने कहा कि हंस प्रकाशन ने ही सबसे पहले 'गोदान' का मूल और शुद्ध पाठ हिंदी में प्रकाशित किया था. अमृतराय के जन्मशती वर्ष में यह जल्द ही पुनः प्रकाशित होगा.