नई दिल्लीः आज हर बात मज़हब के चश्मे से देखी जाने लगी है, जिसके चलते प्रेम और सामाजिकता के अस्तित्व पर ख़तरे मंडराने लगे हैं. 'माटी की सुगंध' समूह ने कवि समुदाय की इसी चिंता को स्वर देने के लिए एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें कविता, गीत, छंद के माध्यम से कवियों ने प्रभावी ढंग से अपनी बात उठाई. सम्मेलन की शुरुआत कवि खेमचन्द सहगल की सरस्वती वंदना से हुई.  कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने की. उन्होंने अपनी कविता में गवलान घाटी में भारत के जवानों के साहस को अपने शब्दों से सलाम किया और सुनाया, “दुश्मन की ठुकाई है, घाटी में हमने एक झलक दिखाई है.मुख्य अतिथि के रूप में कविता पाठ कर रहीं निवेदिता चक्रवर्ती ने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिकता को सम्बल का सूत्र दिया. उन्होंने पढ़ा, “घृणा, पाप, छल, डाह के बीच ये क्या है जो हीरे सा चमक रहा है, निश्चय ही प्रेम.अनूपिन्दर सिंह अनूप और डॉ सविता चड्ढा ने विशिष्ट अतिथि की भूमिका में रचनाएं पढ़ीं.
कवि अनूप ने सुनाया, “ऐ चिरागो! हर तरफ है नफरतों की आंधियांगर खुद को है बचाना, प्यार की बातें करो.” तो डॉ सविता चड्ढा ने अपनी रचना कुछ इस प्रकार पढ़ी, “तुझको पानी है अपनी मंजिल तोतेरा चलना बहुत जरूरी है.” विशिष्ट अतिथि के रूप में ही विजय प्रेमी ने सुनाया,
मुझे काफिर कहा सबने करूं मैं क्या बता जानमकिये सजदे जो मैंने तो जुबां पे नाम तेरा था.
कार्यक्रम का संयोजन भारत भूषण वर्मा ने किया. उनकी कविता की बानगी देखिए, “मोहब्बत से जीना सिखाने चले, जीना मगर हम सिखा न सके.” कवि सम्मेलन के संचालक संजय जैन उम्दा संचालन के साथ उत्कृष्ट काव्यपाठ भी किया. इस कवि सम्मेलन में आराधना सिंह अनु, हरगोविन्द झाम्ब कमल, निर्मल आर्य, प्रीतमसिंह प्रीतम, अनिल पोपट 'कामचोर', बृजेश सैनी, श्रीकृष्ण निर्मल, राम निवास भारद्वाज, डॉ पंकज वासिनी, प्रेम सागर प्रेम और राजकुमार गाइड ने भी अपनी कविताओं से वाहवाही लूटी.