प्रख्यात आलोचक नंदकिशोर नवल नहीं रहे. उनके निधन से समूचा हिंदी जगत मर्माहत है. डॉक्टर नवल का जन्म 2 सितंबर, 1937 को बिहार के वैशाली जिले में हुआ था. वह पटना विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रोफेसर थे और उनकी दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हुईं. उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा से समूचा हिंदी जगत भिज्ञ रहा, इसीलिए पटना और दिल्ली ही नहीं उत्तर प्रदेश के रायबरेली तक में साहित्य प्रेमी उदास हैं. नवल जी ने लगभग 5 वर्षों तक त्रैमासिक पत्रिका आलोचना का भी सह संपादन किया. उनके देहावसान पर रायबरेली के आचार्य द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति से जुड़े गौरव अवस्थी लिखते हैं, नवल जी से सीधा नाता सिर्फ इतना भर है कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति समारोह में वर्ष 2012 में उन्हें अपना दूसरा प्रतिष्ठित सम्मान 'डॉ राम मनोहर त्रिपाठी लोक सेवा सम्मान'समर्पित करने का निर्णय लिया था. दूसरा नाता महाप्राण निराला और महावीर प्रसाद द्विवेदी समेत साहित्य में किए गए उनके अतुलनीय योगदान के एक छोटे से पाठक के रूप में है. उस कार्यक्रम में डॉक्टर नवल सशरीर इसलिए नहीं पधार पाए थे कि उनकी शारीरिक अवस्था अच्छी नहीं थी. उम्र अधिक हो जाने से उनका कहीं आना जाना संभव नहीं था. उन्होंने अपना यह सम्मान ग्रहण करने के लिए नई दिल्ली में रह रही अपनी पुत्री पूर्वा भारद्वाज को भेजा था.
गौरव अवस्थी आगे लिखते हैं, 1981 में डॉक्टर नवल की साहित्य अकादमी से प्रकाशित होकर एक पुस्तक आई थी, 'महावीर प्रसाद द्विवेदी'. इस पुस्तक में उन्होंने आचार्य द्विवेदी के साहित्यिक अवदान को विस्तार से रेखांकित किया है. पर उनका वास्तविक काम महाप्राण निराला पर ही है. निराला रचनावली के आठ खंडों का संपादन डॉक्टर नवल के द्वारा ही हुआ है. डॉ नवल ने अपनी समीक्षात्मक किताब 'निराला और मुक्तिबोध चार लंबी कविताएं' में शीर्षक के अनुरूप निराला और मुक्तिबोध के काव्य की समानताओं का वर्णन तो किया ही है साथ ही निराला की सबसे प्रसिद्ध कविता 'सरोज स्मृति' एवं 'राम की शक्ति पूजा' को लेकर कुछ आलोचनाओं की काट भी बहुत विवेकपूर्ण ढंग से किया. डॉक्टर नवल की यह किताब पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि युग कभी महाप्राण निराला के साथ कहां न्याय हुआ और कहां अन्याय. डॉ नवल ने लिखा है- सरोज स्मृति के अंतिम अनुच्छेद का हिंदी में अर्थ का अनर्थ किया जाता रहा है. आश्चर्य यह देखकर होता है कि इसकी शुरुआत किसी और के द्वारा नहीं स्वयं डॉ रामविलास शर्मा के द्वारा की गई थी. तब से निराला संबंधी साहित्यिक चर्चा में लगातार उसी की आवृत्ति होती रही है. निराला की दो महान रचनाओं को समझने के लिए आज के पाठकों को इस किताब से होकर जरूर गुजरना चाहिए…