भोपालः स्थानीय जनजातीय संग्रहालय सभागार में फाग गायन व पश्चिम बंगाल के पारंपरिक झूमर लोकनृत्य का आयोजन हुआ, जिसमें शामिल कलाकारों ने मेदिनीपुर की मधुश्री हेतियाल के निर्देशन में बेहद मनमोहक प्रस्तुतियां दीं. मंच पर अपने कलात्मक अभिनय कौशल से दर्शकों को अभिभूत कर देने वाले कलाकारों में सुचिनत सुनापोती, सुचिना, नुनीगोपाल, मोंगोल, महताव आदि शामिल थे. कार्यक्रम की शुरुआत होली उत्सव पर गाये जाने वाले फाग गायन पहाड़ धरे मंदर बाजे…. से हुई. जिसमें यह कहा गया है कि आपके स्वागत सम्मान से हमें बहुत खुशी हुई है. इसके बाद 'तुही पीधे लाल सारी….' का गायन हुआ, जिसमें श्री कृष्ण राधा से कहते हैं कि जब तुम लाल साड़ी पहन कर आयी हो और मैं पगड़ी बाधूंगा. इसके पश्चात 'लोहा लोहे लौहौ के, मोह मोहे मौहौ के….', और 'कदंब डाले होरी, बासिटी करे धौरी….' सहित अन्य फाग गीतों से समां बंध गया. तत्पश्चात लोकनृत्य की प्रस्तुति हुई. जिसमें बंगाल के मानभूम छाऊ लोकनृत्य के तहत हिरण्यकशिपु वध को दर्शाया गया.
विष्णुपुराण में वर्णित कथानुसार हिरण्यकशिपु की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी वरदान दे दिया कि उसे न मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा, न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा, न रात में, न घर के अंदर, न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसके प्राणों को कोई डर रहेगा. इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने को अमर समझने लगा. उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा. वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें. उसने अपने राज्य में श्री हरि विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया. हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था और यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता रहा. नाराज हिरण्यकशिपु के आदेश पर उसकी बहन होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया. पर प्रह्लाद सकुशल बच गया और होलिका जलकर राख हो गई. अंतिम प्रयास में हिरण्यकशिपु ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा. तब भगवान विष्णु प्रह्लाद खंभे से नरसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकशिपु का महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर गोधूलि बेला में अंत कर दिया.