पर्थः ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था 'संस्कृति' तथा हिंदी समाज ऑफ पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के संयुक्त तत्वाधान एक समारोह आयोजित हुआ, जिसमें भारत से आए सुपरिचित लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की दो सद्यः प्रकाशित पुस्तकों 'समय की पंचायत' और 'जो देश हम बना रहे हैं' का लोकार्पण हुआ. लोकार्पण के तुरंत बाद अतिथि डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने 'आज का समाज और साहित्य' विषय पर एक रोचक व्याख्यान दिया. अग्रवाल ने इस बात का प्रत्याख्यान किया कि यह एक भ्रामक कथन है कि आज की पीढ़ी की साहित्य में रुचि घट रही है. अनेक उदाहरण देकर यह बात स्थापित की कि असल में आज साहित्य में रुचि बढ़ रही है, खूब लिखा और पढ़ा जा रहा है. उन्होंने बलपूर्वक कहा कि साहित्य को समाज का दर्पण मानने की बात भी सहज स्वीकार्य नहीं है. साहित्य को केवल दर्पण मानना उसकी भूमिका को सीमित करके देखना है. डॉ अग्रवाल ने हिंदी साहित्य की नवीनतम प्रवृत्तियों की चर्चा करते हुए बताया कि आज हिंदी में कविताएं खूब लिखी जा रही हैं, गद्य के क्षेत्र में काफी कुछ नया और उत्तेजक हो रहा है. खूब नए प्रयोग हो रहे हैं, कथेतर की दुनिया में अनेक महत्त्वपूर्ण काम हुए हैं. विधाओं में आवाजाही बढ़ी है और सबसे बड़ी बात यह कि इंटरनेट व तकनीक के सहज सुलभ हो जाने से लोगों में लिखने का चाव और उत्साह खूब बढ़ा है.
डॉ अग्रवाल का विचार था कि वे लोग जिनके बारे में कभी सोचा भी नहीं जाता था कि लिखेंगे, वे भी आज धड़ल्ले से लिख रहे हैं. लोग सोशल मीडिया से अपने लेखन की शुरुआत कर उसे पुस्तकाकार प्रकाशित करवाने लगे हैं. ब्लॉग्स ने भी बहुत सारे लोगों की सर्जनात्मकता को प्रोत्साहित किया है. आज हिंदी का अधिकांश लेखन अपने परिवेश की बेहतरी की चिंता में हो रहा है. समाज में जो भी घटित होता है, विशेष रूप से बुरा, वह लेखक को परेशान करता है और वह अपनी परेशानी को लेखन में व्यक्त करता है. इस मामले में साहित्य, जिसे शाश्वत प्रतिपक्ष कहा जाता है, वह सच्चे अर्थों में चरितार्थ हो रहा है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हिंदी का सारा ही लेखन परिवेश की चिंता में हो रहा है. सच तो यह है कि हिंदी का आज का लेखन बहुरंगी और अनेक आयामी है. रीता कौशल ने व्याख्यान सत्र का संचालन किया.कार्यक्रम के आरंभ में प्रो प्रेम स्वरूप माथुर ने अतिथि लेखक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल का संक्षिप्त परिचय दिया. तत्पश्चात लेखक डॉ अग्रवाल ने अपनी दोनों किताबों की विषय वस्तु की संक्षिप्त जानकारी दी. पुस्तकों का लोकार्पण हिंदी समाज के अध्यक्ष अनुराग सक्सेना, प्रतिनिधि रीता कौशल, ट्रस्टी राज्यश्री मालवीय और प्रो. प्रेम स्वरूप माथुर ने किया. इस अवसर पर पर्थ के प्रथम हिंदी उपन्यास 'पड़ाव' की रचनाकार लक्ष्मी तिवारी भी उपस्थित थीं. कार्यक्रम का संचालन किया राज्यश्री मालवीय ने.राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की के जन्म की एक सौ पचासवीं वर्षगांठ को स्मरण करते हुए कार्यक्रम का शुभारंभ गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर रचित उनके प्रिय गीत ‘एकला चालो रे’ के हिंदी अनुवाद के सुमधुर गायन से किया गया. गीत को प्रस्तुत किया शरद सी. शर्मा और उनके साथियों ने.