नई दिल्लीः साहित्य अकादमी द्वारा 'ललित निबंध: स्वरूप एवं परंपरा' विषय पर आयोजित द्वि-दिवसीय संगोष्ठी संपन्न हो गई. दूसरे दिन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात लेखक अरुणेश नीरन ने की और विद्याविंदु सिंह एवं मंजरी चतुर्वेदी ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. मंजरी चतुर्वेदी ने 'ललित निबंध परंपरा: पूर्वरंग' विषय पर हजारीप्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय और विवेकी राय के ललित निबंधों की चर्चा की और कहा कि जहाँ हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंध वैचारिक थे वहीं विद्यानिवास मिश्र के निबंध भावनात्मक थे. विवेकी राय ने अपने निबंधों में ग्राम्य जीवन और आंचलिकता को पिरोया तो कुबेरनाथ राय के निबंध भारतीय संस्कृति के गूढ़ रहस्यों तक गए. अध्यक्षीय वक्तव्य में अरुणेश नीरन ने हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र और कुबेरनाथ राय के साथ अपने आत्मीय संबंधों को याद किया.
'ललित निबंध परंपरा: उत्तर रंग' विषय पर आयोजित दूसरे सत्र में विवेक दुबे ने वर्तमान पीढ़ी के ललित निबंधकारों श्यामसुंदर दुबे, श्रीराम परिहार एवं अष्टभुजा शुक्ल का उल्लेख किया और कहा कि इनके ललित निबंधों में हम उत्तर परंपरा की सांस्कृतिक चेतना के विविध आयामों को देख सकते हैं. अध्यक्षीय वक्तव्य में माधवेंद्र पांडेय ने कहा कि मैं उत्तर आधुनिकता एवं वर्तमान परिस्थितियों में ललित निबंध की चर्चा करते हुए कहना चाहता हूँ कि यह विधा साहित्य में लगभग अनुपस्थित है. कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने किया.कार्यक्रम में साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक एवं हिंदी परामर्श मंडल के सदस्य कमल किशोर गोयनका, सुरेश ऋतुपर्ण, अरुण कुमार भगत तथा अन्य साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे.