पटनाः भोजपुरी के भारतेंदु और शेक्सपियर करार दिए गए भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि पर बिहार संग्रहालय परिसर में  लोक राग और आखर ने 'बिहारनामा' कार्यक्रम के तहत व्याख्यान, बतकही और सुरों की महफिल सजाई. कार्यक्रम के दौरान कथाकार ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि भिखारी ठाकुर की जीवनयात्रा को देखें तो वे एक आम आदमी रहे. उनके अंदर भी एक बेचैनी थी, जो हर इनसान में होती है. उनके दिल के अंदर एक अकुलाहट थी, जो वे समाज में अपनी आंखों से देख रहे थे, पुरुष दो रोटी के लिए अपनी नई-नवेली दुल्हन को छोड़कर परदेस जाते. उधर पति के वियोग में पत्‍‌नी का बुरा हाल. जिस दौर में भिखारी ठाकुर रहे, उस दौर में पढ़ाई-लिखाई करना बहुत मुश्किल था. समय के साथ शिक्षा पाने की लालसा थी. पढ़-लिखकर अपने दौर का तुलसीदास बनने की बेचैनी ठाकुर में रही. इसे उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से बयां किया. उनकी रचनाओं में महिलाओं का दर्द और व्यथा देखने को मिलती है. भिखारी ठाकुर पर शोध करने वाले प्रो. तैयब हुसैन पीड़ित ने कहा कि ठाकुर को भी समाज ने दो वर्गो में बांटा. एक वर्ग ने उन्हें नचनिया-गवनिया कहा, तो दूसरी ओर उन्हें अवतरित पुरुष भी कहा गया.

प्रो. हुसैन ने कहा कि भिखारी ठाकुर की बिदेसिया में औरतों की पीड़ा और व्यथा समाहित है. भिखारी ठाकुर को राहुल सांकृत्यायन ने अनगढ़ हीरा कहा था. भोजपुरी साहित्य पर तैयब हुसैन ने कहा कि आज कई लोग अच्छी भोजपुरी बोलते हैं, लेकिन लिख नहीं पाते. जो महसूस किया, उसे ही लिखा. 'गबरघिचोर' पर बात करते हुए ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि यह नाटक आज की कहानी है. इसी कार्यक्रम में 'बिहार की संगीत परंपरा और भारतीय संगीत में उसका योगदान' व्याख्यान के दौरान नार्वे निवासी बिहारी लेखक डॉ. प्रवीण झा ने कहा कि भारत का संगीत बिहार की संगीत परंपरा के साथ ही समृद्ध हुआ. गायन, वादन और नृत्य तीनों शैलियों में बिहार हमेशा से अग्रणी रहा है. बिहार ध्रुपद, धमार, कथक, ठुमरी का केंद्र रहा है. बिहार में आमता, गया, दरभंगा, बेतिया कई ऐसे घराने रहे, जिनका संबंध भारतीय संगीत से रहा. जबकि पखावज, सरोद के मूल में बिहार है. घरानों की बात करते हुए झा ने दरभंगा घराने के बारे में कहा कि दरंभगा में मल्लिक ध्रुपदियों की परंपरा 200 साल की है. राधाकृष्ण और कर्ताराम नाम के दो भाई मिथिला नरेश माधव सिंह के शासन काल में राजस्थान से दरंभगा आए थे, जो दरभंगा के मिश्र टोला में बस गए. इस कार्यक्रम में बिहार के कई प्रबुद्ध संगीतप्रेमी व साहित्यकार उपस्थित थे.