नई दिल्ली: चर्चित लेखिका अल्पना मिश्रा के उपन्यास अस्थि फूल पर राजधानी के हिंदी भवन में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें वक्ता के रूप में साहित्यकार निर्मला जैन, ममता कालिया, अनामिका, अभय कुमार दुबे, अवधेस प्रीत, संजीव कुमार एवं प्रेम भरद्वाज ने शिरकत की. संचालन आकांशा पारे ने किया. राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास 'अस्थि फूल' आंदोलन और विस्थापन के बहुपरतीय सवालों से जूझता है. यह उपन्यास झारखंड आंदोलन और वहां की औरतों के बाजार में बेचे जाने की दारुण कथा है. उपन्यास के लिखने की प्रक्रिया पर अपने अनुभव सांझा करते हुए कहा अल्पना मिश्र ने कहा, "इस उपन्यास को लिखने के बाद मैंने महसूस किया कि लेखक के बोलने का सबसे अच्छा तरीका उसका लेखन होता है. झारखंड की जिन लड़कियों की कहानी पर यह उपन्यास आधारित है, उनकी दिक्कतों को देखकर मैंने निश्चय किया कि मैं उनकी कहानी जरूर कहूंगी. इसके लिये चाहे जितनी भी यातनाएं और कठिनाईयां सहनी पड़ें."
आलोचक संजीव कुमार ने कहा कि इस उपन्यास को लिखने के लिये लेखिका के साहस को सलाम करना चाहिए. उन्होंने कहा, "इसे पढ़ते हुए यह पता लगता है कि यह ना जाने कौन सी संस्कृति है इस देश की जो औरतों को इतना रोंधती है." लेखक एवं संपादक अभय कुमार दुबे ने उपन्यास की उपयोगिता पर बात करते हुए कहा कि इसमें 4 तरह के समय और 3 तरह की यथार्थ को दर्शाए गया है. इन सारे समय को स्पष्ट करना और इसे कलात्मक तरीके से लिखना इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता है. झारखंड आंदोलन की बुनियाद और आदिवासी समाज के सपने के टूटने की दास्तान पर आधारित यह उपन्यास, साहित्य में अपनी एक विशेष पहचान बनाता है. इस विषय पर संपादक प्रेम भारद्वाज, लेखक एवं पत्रकार अवधेश प्रीत और प्रसिद्ध साहित्यकार ममता कालिया ने भी अपने विचार पाठकों एवं श्रोताओं से साझा किए. कार्यक्रम के अंत में अपने अध्यक्षीय वक्तव्य को रखते हुए वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर निर्मला जैन ने कहा, "इस उपन्यास को लिखना अपने आप में एक चुनौती है, इस पढ़ते हुए पता लगता है कि लेखिका ने इस उपन्यास पर कितनी मेहनत की है."