हिसार: रूबाई सम्राट के रूप में ख्यात उदयभानु हंस की एक अमर सी हो चली रूबाई की यह पंक्तियां हैं. वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी, महाकाव्यकार, मुक्तककार, गीतकार, दोहाकार, समीक्षक, गजल, हाइकु आदि विविध विधाओं में सतता रचनाकर्म करने वाले थे. हरियाणा में उनकी ख्याति का आलम यह था कि वह राज्य कवि के रूप में ख्यात थे. उनका जन्म 2 अगस्त, 1926 को वर्तमान में पाकिस्तान में चले गए जिला मुजफ्फरगढ़ में तहसील कोट अद्दू के दायरा दीन पनाह में हुआ था. कहते हैं देश की जश्ने आजादी का समारोह देखने की लालसा में वे मुलतान से एक महीना पहले ही भारत चले आए थे और फिर देश के बंटवारे के बीच फैली हिंसा के चलते पाकिस्तान वापस नहीं जा सके थे. वह हरियाणा के हिसार में रह रहे थे, जहां उनका निधन हुआ.
उदयभानु हंस ने स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान 1943 से 1946 तक हिंदी और उर्दू में देशभक्ति की कविताएं लिखकर महत्वपूर्ण कार्य किया. हंस के रचनाकर्म की परिधि अत्यंत व्यापक और गहन है. गीतकार के रूप में वह हरिवंश राय बच्चन, शिवमंगल सिंह सुमन, भवानी प्रसाद मिश्र, नीरज तथा राम अवतार त्यागी जैसे कवियों की श्रेणी में आते थे. मुक्तककार के रूप में वे अपने मुक्तकों की उत्तमता तथा गुणवत्ता की दृष्टि से अद्वितीय थे. गीत-संग्रह 'धड़कन' में उनकी ओजस्वी कविताओं का संग्रह किया गया है. इनकी राष्ट्रभक्ति भावना को देखकर डॉ. शिवकुमार शर्मा ने लिखा था, देशप्रेम से सराबोर इनके राष्ट्र-गीतों के कारण इन्हें नि:संकोच राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी तथा रामधारी सिंह दिनकर की कोटि में रखा जा सकता है. पंजाब से अलग राज्य बनने के बाद हरियाणा सरकार ने 1967 में उदयभानु हंस को राज्य कवि का दर्जा प्रदान किया. हंस को श्रेष्ठ साहित्यकार के रूप में अनेक पुरस्कार व सम्मान से नवाजा गया था. उनकी चंद पंक्तियां
पंछी ये समझते हैं चमन बदला है
हंसते हैं सितारे कि गगन बदला है
शमशान की ख़ामोशी मगर कहती है
है लाश वही सिर्फ क़फन बदला है