पटना: पटना साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन एक सत्पर में " कटिहार टू कैनेडी" विषय पर चर्चा हुई। इली नाम से पुस्तक लिखनेवाले लेखक संजय  कुमार से बात की वाणी प्रकाशन की अदिति माहेश्वरी गोयल ने। चर्चा की शुरुआत अदिति ने ये फूछकर किया कि कटिहार से दुनिया कैसी नज़र आती  हैसंजय कुमार  ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहाकटिहार भीड़ भाड़  और धूल भरा , तंग गलियों का शहर था।  जब तक कटिहार में रहा था तो कुछ नज़र नहीं आता था । दिल्ली गया तो बहुत समय तक  डरा रहा था। कटिहार से बाहर ही नहीं निकला था पटना भी नहीं आया था। अपनी  आकांक्षा  के बारे में दिल्ली जाकर ही पता चला। फिर गुजरात में महिलाओं का सेल्फ हेल्प ग्रुप के संगठन ' सेवा' के माध्यम से गरीब लोगों की गरीबी देखी। इतनी गरीबी तो कटिहार में भी न थी। सेवा में मेरा कांट्रेक्ट सात साल का ही था जबकि मैं 17 साल रह गया।  ' सेवा' में काम करने के दौरान एक दिशा मिली।"

 संजय ने बताया कि " 2006 में  मैंने फोटॉग्राफी की,जिसका मुझे बचपन से शौक थामैंने तय किया कि   गरीबी को मजबूरी में नहीं दर्शाना है । तब मैंने " हैंड्स ऑफ फोक' नाम ले एक कॉफी टेबल बुक तैयार किया। मात्र 5-7 हजार की कमाई के लिए वे लोग पूरे परिवार के  साथ उतने दूर रहे। हमें ये नहीं पता कि नमक जो हमारे टेबल पर  आता है तो कैसे आता है।"

अदिति के एक प्रश्न के उत्तर में संजय ने बताया किछोटी  जगह से  आने का फायदा रहता है कि भूख बनी रहती है। वेस्टर्न एजुजेशन मूल्यवान रहता है ये वहीं पता चला। फिर  मुझे हार्वड  के कैनेडी स्कूल में सिद्धान्त व व्यवहार के बारे में  सीखने का मौका मिला। हालांकि मेरा फिर दुबारा कटिहार जाने का अनुभव अच्छा नही  रहा।   'सॉलिड वेस्ट  मैनेजमेंट' का प्रोजेक्ट था जिसे चलाना चाहता था  लेकिन मैं सफल न हो  पाया। मैं समझता हूं कि सरकारी स्कूल में पढ़कर भी अच्छा काम किया जा सकता है।

 अदिति के इस सवाल भारत के बारे में बात करने के लिए अकादमिक जगत में ऐसी भाषा में बात करते हैं जो  अपनी नहीं है? उनकी जो दृष्टि है उसे लेकर  क्या कहेंगे ?

 संजय  कुमार कहते हैं " अपने देश में एक  कानपुर लाइन है।  जितने भी लोग हैं वे कानपुर के उधर ही रहते हैं   यानी पश्चिम ही रहते हैं। सभी दिल्ली, जयपुर में रहना चाहते हैं बिहार में कम लोग रहना चाहते हैं। इसे 'कानपुर  लाइन ' कहा जाता है। विकास के लिए सिर्फ फाइनेंशल  रिसोर्सेज ही नहीं बल्कि  इंटेलक्चुल रिसोर्सेज की जरूरत है। जो प्रतिभावान लोग हैं वे उन जगहों पर नहीं जाना चाहते जहाँ चमक-दमक नहीं है। हमारी बड़ी चुनौती है कि हम प्रतिभावान लोगों को कैसे बिहार में  काम करने के लिए प्रेरित कर सकें।