नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन समूह ने 'हम हशमत की याद में' नामक एक स्मृति सभा का आयोजन किया, जिसकी शुरुआत कृष्णा सोबती की याद में राधिका चोपड़ा के गायन से हुई. उन्होंने उनकी पसंद की गजलें प्रस्तुत कीं और बताया कि 'सोबती जी को बेगम अख्तर बहुत पसंद थीं और वे उन्हें सुनते वक्त रो देती थीं.' कार्यक्रम का संचालन लेखक संजीव कुमार ने किया. उन्होंने कहा, "90 वर्ष की उम्र के बाद भी उनकी 6 किताबें प्रकाशित हुईं, इससे यह पता लगता है कि वह दिमागी तौर पर कितनी सजक और रचनात्मक थीं. पिछले चार-पांच वर्षों में उन्होंने  असहिष्णुता  के खिलाफ़ लगातार बयान दिए और सभाओं में भी गयीं." बीबा सोबती ने कहा, "वह दृढ़ विश्वासी, हिम्मती, सृजनात्मक एवं हमेशा सचेत रहने वाली औरत थीं. उन्हें बातें करने का बहुत शौक था, वह अपने बचपन के जमाने को अपने बातों के जरिये जीवंत कर देती थीं." कवि अशोक वाजपेयी ने कहा, "कृष्णा सोबती ने एक लेखक का जीवन बड़े दमखम के साथ जिया. उन्होंने कभी किसी से सिफारिश की और न ही किसी को कोई  रियायत दी." आगे कहा, "हमारे बीच अगर ऐसा कोई लेखक हुआ जिसे अपने लेखन पर अभिमान भी था, स्वभिमान भी था और आत्मसम्मान भी था तो वह केवल कृष्णा सोबती थीं."

 

वरिष्ठ लेखक गिरिराज किशोर ने अपने अनुभवों को सांझा करते हुए कहा, "कृष्णा सोबती ने असल इंसानियत का दायित्व पूरी तरह निभाया. वे बहुत ही परफेक्टनिस्ट थी. किसी भी चीज को वह हमेशा बेहतर से बेहतर करना चाहती थी." गीतांजलि श्री ने कहा, "आते दिनों में हम समझेंगे और समझते रहेंगे कि हमने किन्हें खो दिया है. उनका कहा, उनका लिखा हमेशा रहेगा." लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा, "मैं कृष्णा सोबती के व्यक्तित्व और व्यक्तिगत जीवन के बारे उतना ही जानता हूं जितना एक सामान्य पाठक उनके बारे में जान सकता है." नन्द किशोर आचार्य ने कहा, "कृष्णा सोबती 'कोमलता और दृढ़ता की प्रतीक थी." शाजी ज़मां का कहना था, "कृष्णा सोबती में औरों की खूबियों को ढूढ़ने का बड़प्पन था. और यह वह खूबी है जो आज के समाज में वक्त के साथ कम से कमतर होती जा रही है." पत्रकार और लेखक ओम थानवी ने कहा, "कृष्णा सोबती ने हमेशा ही साहित्य और अपनी तत्कालीन प्रतिक्रिया में रेखा खिचीं हुई थी जो साफ़ दिखती थी और उनका यह गुण उन्हें एक महान लेखिका का दर्जा देता है." राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि शुरुआती दौर में उनसे मिलने जाने में डर लगता था, क्योंकि उनसे काफी डांट सुनने को मिलती थी. चन्ना उनकी पहली पुस्तक थी जो पहली ही नजर में अच्छी लगी. आज के समय के बारे में वह कभी परेशान रहती थी और 2019 के लिए वह काफी आशावादी थी.