नई दिल्लीः हिमांशु जोशी नहीं रहे. हिंदी के इस चर्चित कथाकार ने उपन्यास, कहानी संग्रह, कविता संग्रह, यात्रा-वृत्तांत, नाटक, बालसाहित्य जैसी सभी विधाओं में हाथ आजमाया था और लगभग चार दशकों से भी अधिक समय तक लेखन में सक्रिय रहे. स्वतन्त्र लेखन व पत्रकारिता के अलावा वह 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' में वरिष्ठ पत्रकार, कोलकत्ता से प्रकाशित साहित्यिक मासिक पत्रिका 'वागर्थ' के संपादक, नार्वे से प्रकाशित पत्रिका 'शांतिदूत' के विशेष सलाहकार और हिन्दी अकादमी, दिल्ली की पत्रिका 'इन्द्रप्रस्थ भारती' के सम्पादन मंडल के सदस्य भी रहे. वह भारत सरकार की भाषा, हिंदी, फिल्म आदि की प्रभावशाली समितियों के सदस्य रहे और अमेरिका, नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, फ्रांस, नेपाल, ब्रिटेन, मारीशस, त्रिनिदाद, थाईलैंड, सूरीनाम, नीदरलैंड, जापान. कोरा आदि अनेक देशों की यात्राएं की. उनके निधन से सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया.
उनके लिखे उपन्यासों में 'अरण्य', 'महासागर', 'छाया मत छूना मन', 'कगार की आग', 'समय साक्षी है', 'तुम्हारे लिए', सु-राज कहानी संकलनों में अंत-तः तथा अन्य कहानियां, मनुष्य-चिह्न तथा अन्य कहानियां,. जलते हुए डैने तथा अन्य कहानियां, रथ-चक्र, हिमांशु जोशी की चुनी हुई कहानियां, तपस्या तथा अन्य कहानियां, गन्धर्व-गाथा, हिमांशु जोशी की चर्चित कहानियां, हिमांशु जोशी की आंचलिक कहानियां, हिमांशु जोशी की श्रेष्ठ प्रेम कहानियां, इस बार फिर बर्फ गिरी तो, नंगे पांवों के निशान, दस कहानियां, प्रतिनिधि लोकप्रिय कहानियां, इकहत्तर कहानियां, सागर तट के शहर, स्मृतियाँ. परिणति तथा अन्य कहानियां तथा कविता संग्रह 'अग्नि-सम्भव'. 'नील नदी का वृक्ष'. 'एक आँख की कविता' आदि काफी चर्चित रहे. लगभग 35 शोधार्थियों ने हिमांशु जोशी के साहित्य पर शोध कर डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की थी और कई विश्वविद्यालयों में उनकी रचनाएं पाठ्य-क्रम में शामिल हैं. जागरण हिंदी की ओर से भी श्रद्धांजलि.