हिन्दी के कवि एवं विचारक कमलेश के कृतित्व पर ‘कमलेश दृष्टि’ कार्यक्रम का आयोजन रज़ा फ़ाउण्डेशन, दिल्ली ने स्वराज भवन,भोपाल में किया। इस अवसर पर राजकमल से प्रकाशित कमलेश की पुस्तक ‘रूसी संस्कृति का उद्भव और विनाश’ का लोकार्पण फ़िल्मकार कुमार शहानी और कवि, आलोचक अशोक वाजपेयी ने किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में उदयन वाजपेयी ने कहा कि 'कमलेश विस्मृत परम्परा से संवाद करने वाले अनूठे लेखक रहे हैं।' कुमार शहानी ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा कि कमलेश जैसे कवि पर बोलना आसान नहीं है, क्योंकि वे लगातार अपने को रचते हुए कवि हैं। समापन वक्तव्य में अशोक बाजपेयी ने कहा 'स्मृति कमलेश की कविता का केन्द्र बिन्दु है । उन्हें अपने हिन्दी की परम्परा में होने का गहरा एहसास था।'
कमलेश की कविता और गद्य पर दो सत्र आयोजित थे। 'कमलेश की कविता' पर पूनम अरोड़ा ने कहा कि उनकी कविता में वैश्विक भाव जगत अपनी समृद्धि के साथ महसूस होता है।
असमिया कवि नीलिम कुमार ने कमलेश के कविता संग्रह 'खुले में आवास' और 'बसाव' पर असमिया लहज़े में हिन्दी में अपना पर्चा पढ़ा।ऐसा कम ही होता है कि अन्य भाषा-भाषी कवि हिन्दी में विस्तार से अपनी बात रखें।
'कमलेश का गद्य' सत्र में श्री विक्रम भारद्वाज ने कहा कि कमलेश जैसे कवि-विचारक की अद्भुत दृष्टि आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान का स्रोत बन सकती है। मिथिलेश शरण चौबे ने कहा कि कमलेश से यह सीखा जाना चाहिए कि किसी लेखक को कौन-सी बातें अपने आलोचनात्मक उपक्रम में ध्यान रखनी चाहिए। राजीव रंजन गिरि ने कमलेश के वैचारिक गद्य का ज़िक्र करते हुए कहा कि कमलेश की दृष्टि में लोहिया का हिन्दी गद्य उच्चकोटि का था। ध्रुव शुक्ल ने कमलेश की कविता को अन्तरलोक और बहिर्लोक से एकसाथ संवाद करती हुई कविता बताया। कार्यक्रम में कमलेश की कविताओं का ऑडियो भी सुनाया गया।