पटना, 10 सितंबर। " आज की हिंदी कहानी अपने समय में हो रही सामाजिक-आर्थिक बदलाव को सामने लाती है और नए समरस मूल्यों के समाज में सहायक बनती है। चर्चित कथाकार शम्भू सिंह की कहानी 'दलित बाभन ' सामन्ती मूल्यों पर प्रहार करती हुआ एक नए जाति विहीन समाज के मूल्यों को को प्रतिष्ठित करती है।" ये बातें आलोचकों द्वारा ''सृजन संगति" के तत्वाधान में कथाकार व पटना दूरदर्शन के कार्यक्रम अधिशासी शम्भू.पी सिंह की कहानी 'दलित बाभन' पर केंद्रित एक आयोजन में उभर कर आई। आयोजन अभियंता भवन,अदालत गंज , पटना में किया गया था।
किसी रचनाकार की एक कहानी को आधार बनाकर बातचीत कम ही होती है लेकिन कई सम्मानों से नवाजे गए व साहित्यकारों में लोकप्रिय शम्भू पी सिंह की कहानी 'दलित बाभन' से ये संभव हुआ। ज्ञातव्य हो की शम्भू पी सिंह के कई कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें संस्कृति प्रकाशन, भागलपुर से 2016 में 'जनता दरबार', 1976 में उर्मिला प्रकाशन, भागलपुर से ही 'गंगा धाम', और 1976 में ही नाटक ' विधवा का प्रकाशन हुआ।
सबसे पहले शम्भू पी सिंह ने अपनी कहानी का पाठ किया। कहानी पाठ के बाद साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा "समाज में हो रहे परिवर्तन को रेखांकित करती है। यह कहानी दलित व स्त्री विमर्श को समेटती हुई प्रगतिशील चेतना को विकसित करती है।" बी भगत ने अपने संबोधन में आरक्षण को एक ज्वलन्त मुद्दा बताया। जातीय आरक्षण के माहौल में यह कहानी जातीय खोखलेपन को सामने लाती हुई उसके अंतर्द्वंद को सामने लाती है।"
'दलित बाभन' पर अपनी राय रखते हुए कथाकार हृषीकेश पाठक ने कहा " दलित बाभन 'नई धारा ' के नए अंक में छपी कहानी है जो गरीब ब्राह्मण की दारुण स्थिति का चित्रण करती है। उसकी स्थिति आज दलितों से ज्यादा बदतर है। यह कहानी आरक्षण की मांग करती हुई भी उसकी पीड़ा को सामने लाती है और समरस समाज बनाने की प्रेरणा देती है।"
कवि, व 'नई धारा ' के संपादक शिवनारायण ने कहा " शम्भू सिंह की इस कहानी में समय व समाज का यथार्थ बोलता नज़र आता है।" शम्भू पी सिंह की कहानियों पर मंचन हो चुके हैं, जिनमे 'खेल-खेल में 'व 'एक्सीडेंट ' प्रमुख है, इसके अलावा उन्होंने कई वृत्तचित्रों, टेलीफ़िल्मों का निर्माण किया है। 'मंजिल' , 'कानों में कंगना' , ' रामफल का गांव ' और 'खारिज' चर्चित टेलीफ़िल्मों में गिनी जाती है।
सुप्रसिद्ध कवि जानकी वल्लभ शास्त्री के जीवन पर आधारित वृत्तचित्र 'ज़िंदगी की कहानी रही अनकही' , और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के जीवन पर आधारित ' राजेन्द्र स्मृति संग्रहालय' खासी सराही गई।
संगोष्ठी में रमाकांत पांडे, राजकुमार शर्मा, माधुरी सिन्हा में भी अपने विचार रखे।कथा संगोष्ठी की अध्यक्षता राजकुमार ने की जबकि संचालन हृषीकेश पाठक ने किया।