साहित्य और संगीत जगत में यतीन्द्र मिश्र ने अपने लेखन से एक अलग पहचान बनाई है। कवि के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले यतीन्द्र मिश्र को पिछले साल लता मंगेशकर पर लिखी गई उनकी किताब लता सुरगाथा के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था | हाल ही में यतीन्द्र ने संगीत नाटक अकादेमी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘संगना’ के संपादन का कार्य संभाला है। उनके संपादन में संगना का नया अंक बाजार में है। संगना को लेकर यतीन्द्र मिश्र से एक बातचीत

प्रश्न- ‘संगना’ के संपादन को लेकर आपकी योजनायें और अपेक्षाएं क्या हैं?

संगना का दायित्व जब से मैंने लिया है, मेरा प्रयास है कि इसमें दी जाने वाली सामग्री का कलेवर कुछ बदला हुआ हो। इसलिए भी कि लगातार पच्चीस अंकों के बाद जब इसंके सम्पादन के लिए एक युवा को चुना गया है, तो लेखकीय सामग्री भी नये शोधकर्ताओं, संगीत अध्येताओं और युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली होनी चाहिए। हर तरह की आवाज़ों को इस पत्रिका में जगह मिले, जो संगीत, नाटक और अन्य कलाओं के लिए विमर्श की नयी ज़मीन तैयार कर रहे हैं। मेरी अपेक्षा है कि अधिक से अधिक लोग इस पत्रिका से जुड़ें, इसका व्यापक प्रचार-प्रसार हो।

 

प्रश्न- संपादन का कार्यभार संभालने के बाद इसके अंक के संपादन का अनुभव कैसा रहा?

मेरे लिए हर काम बहुत तन्मयता से करने वाला और शोध व परिश्रम पर आधारित होता है। पहले अंक के संयोजन में मैंने इस बात का खास ध्यान रखा कि जिस दुर्लभ सामग्री को हम परोसने जा रहे हैं, उसका सही रूप में आर्काइब्ज के टेपों से निकालकर लिप्यन्तरण किया जा सके। यह बड़ी लम्बी, मेहनत भरी और थकाने वाली प्रक्रिया रही, जिसमें अकादेमी ने भरपूर सहयोग दिया। आज हम दस महान कलाकारों के दुर्लभ साक्षात्कार पाठकों के समक्ष ला सके हैं, तो यह अपने में बहुत गर्व करने वाली बात है। मुझे ध्यान नहीं है कि इससे पहले अंजनीबाई मालपेकर या मास्टर फिदा हुसैन ‘नरसी’ के इतने लम्बे वार्तालाप हमने कहीं पढ़े होंगे। इसी तरह बेगम अख़्तर, उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ाँ और सितारा देवी जैसे बड़े कलाकारों की बातचीत भी अपने में धरोहर संजोने जैसी है।

 

प्रश्न- भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परम्परा के बावजूद, क्या कारण है कि प्राय: इसके कलाकार अपने जीवनकाल में गुमनाम ही रह जाते हैं? 

ऐसा हर बार नहीं होता। इसी देश के तमाम सारे शास्त्रीय कलाकार ऐसे रहे हैं, जिन्हें विश्व स्तरीय प्रतिष्ठा मिली, बल्कि भारतीय संगीत के वे पर्याय ही माने जाते हैं। पण्डित उदयशंकर, पण्डित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर ख़ाँ, उस्ताद विलायत ख़ाँ, उस्ताद अल्लारखा, उस्ताद जाकिर हुसैन जैसे कलाकारों को जितना सम्मान और लोकप्रियता मिली है, उससे कौन वाकिफ नहीं है?  हालाँकि यह भी सत्य है कि बहुत सारे कलाकारों को वो सफलता नहीं मिली, जिनके वे हकदार थे। इसके लिए कोई एक कारण गिनाना काफ़ी नहीं है।

 

 

प्रश्न- संगीत और कला के क्षेत्र में नयी पीढ़ी के लिए क्या संभावनाएं हैं?

कला और संगीत की दुनिया में सम्भावनाएँ अनन्त हैं। बहुत सारे क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ कलाकार अपनी प्रतिभा का समुचित इस्तेमाल करते हुए उन क्षेत्रों में असरकारी काम कर सकते हैं। स्वतंत्र रूप से एक स्थापित कलाकार बनने के अलावा आज सिनेमा, मीडिया, सोशल मीडिया और अध्ययन, अध्यापक के ढेरों क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ पर संगीत के नये-नये आयामों पर काम और विमर्श हो रहा है। अब वह दौर नहीं रहा जब स्थापित और बड़े कलाकारों को ही गाने के मौके मिलते थे। संगीत और कला की दुनिया असीम है और उसमें सही ढंग से प्रवेश करते हुए आप बड़ी सफलताएँ अर्जित कर सकते हैं।