नई दिल्ली: “हमेशा आनलाइन रहने वाली संस्कृति में अक्सर चिंतन या मानसिक विश्राम के लिए बहुत कम स्थान रहता है, जिससे तनाव में वृद्धि होती है.” यह बात राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की कार्यवाहक अध्यक्ष विजया भारती सयानी ने विज्ञान भवन में आयोजित ‘मानसिक स्वास्थ्य: कक्षा से कार्यस्थल तक तनाव का समाधान’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही. इस सम्मेलन में मानसिक स्वास्थ्य, तनाव और स्वास्थ्य के बीच संबंधों पर चर्चा करने के लिए विशेषज्ञ, नीति निर्माता और हितधारक एक मंच पर उपस्थित थे. सयानी ने उद्घाटन सत्र में मुख्य भाषण देते हुए एक ऐसा विश्व बनाने का आह्वान किया, जहां मानसिक स्वास्थ्य हमारे जीने, कार्य करने और आगे बढ़ने का एक बुनियादी पहलू हो. उन्होंने कहा कि शिक्षकों और प्रशासकों को भी संकट के संकेतों को पहचानने और छात्रों को समय पर सहायता प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि डिजिटल उपकरणों ने शिक्षा में क्रांति ला दी है, वे सोशल मीडिया, साइबर-बदमाशी और सूचनाओं के अत्यधिक संपर्क जैसी चुनौतियां भी लेकर आए हैं.

सयानी ने कार्यस्थल पर तनाव का उल्लेख करते हुए कहा कि संगठनों को स्वास्थ्य कार्यक्रमों से आगे बढ़कर सहानुभूति और देखभाल की वास्तविक संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि काम का दबाव केवल करियर की शुरुआत में कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पदों के सभी स्तर पर है. परिवारों और समुदायों की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता. सहयोग देने वाले संबंध, मानसिक स्वास्थ्य की आधारशिला हैं. यह स्वीकार करके कि मानसिक स्वास्थ्य एक साझा जिम्मेदारी है, हम सामूहिक रूप से एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जो उपलब्धियों के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी महत्व देता है. उन्होंने शांति प्राप्त करने में मानसिक अनुशासन और आत्म-जागरूकता के निम्नलिखित सिद्धांतों की प्रासंगिकता के बारे में भारतीय शास्त्रों के महत्व को भी रेखांकित किया. पूरे दिन तीन सत्र आयोजित हुए, जिनका विषय ‘बच्चों और किशोरों में तनाव,’ ‘उच्च शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां’ और ‘कार्यस्थल पर तनाव और थकान’ था. इन सत्रों का उद्देश्य जीवन के विभिन्न चरणों, शिक्षा से लेकर रोजगार तक में तनाव के मनोवैज्ञानिक प्रभावों का पता लगाना तथा विभिन्न क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करना था.