लखनऊ: हे राम, राम राम, हाय राम, राम नाम सत्य है… सांस लेने से लेकर सांस छोड़ने तक एक ही नाम, राम ही राम. जन्म से लेकर मृत्यु और लोक व्यवहार के प्रत्येक भाव में जिस तरह राम व्याप्त हैं, उसका दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता. जागरण संवादी के सत्र ‘राम का लोकरंजक रूप’ में प्रश्न था कि यह रूप है क्या. जीवन और कला की विविध विधाओं के विद्वानों ने इसे गोस्वामी के शब्दों में यूं अभिव्यक्त किया, ‘सियाराम मय सब जग जानी….’ उपशास्त्रीय गायिका मालिनी अवस्थी ने राम के लोकरंजक रूप का वर्णन करते हुए कहा, भारत के चित्त में जो आदर्श स्थापित है उसमें सांस लेने से लेकर सांस छोड़ने तक राम ही राम हैं. लोक प्रचलित संस्कार गीतों में बच्चे के जन्म के समय गाये जाने वाले सोहर से लेकर बरुआ, श्रमगीत, कोल्हू गीत या इसी प्रकार के अन्य विविध संस्कारों में जो गीत हैं, उनमें हर जगह राम हैं. मालिनी अवस्थी ने गीतों और उदाहरणों से अपनी बात कही. उन्होंने कहा कि राम ने विनम्रता के साथ प्रारब्ध को स्वीकार किया और संघर्ष को भी. यही कारण है कि त्रेता युग बीते कितना समय हुआ, लेकिन आज भी पूरे भारत में 70 प्रतिशत लोगों के नाम बिना राम के पूरे नहीं होते.
संचालक रवि प्रकाश टेकचंदानी के प्रश्न पर अयोध्या से पधारे संत मिथिलेशनंदिनी शरण ने राम के रूप को व्याख्यायित करने से पहले लोक और रंजक शब्दों की परिभाषा दी. उन्होंने कहा, लोक का तात्पर्य लोग से भी है और भुवन से भी. वनस्पति से लेकर वृहस्पति तक लोक एक तारतम्य में हैं और जो इसे रंजित करता है या रंगता है या इस तारतम्य में बांधता है वह राम है. यही राम का लोकरंजक रूप है. उन्होंने उद्धरण दिया कि जन्म के बाद जब शिशु राम रोते नहीं तो माता कौशल्या विचलित हो जाती हैं. उन्हें व्याकुल देख राम ने रोना शुरू किया. ‘सुनि वचन सुजाना रोदन ठाना….’ यानी, यदि रोने से माता को तृप्ति मिलती है तो रोना भी रंजक है. राम सभी को तृप्त करते हैं. जिसे जीवन देते हैं, उसे भी तृप्त करते हैं और जिसे मारते हैं उसे भी तृप्त करते हैं. रावण हो या बालि… राम के हाथों मरकर तृप्त होते हैं. राम की लोकरंजकता को परिभाषित करते हुए कहा, जिसने राम को पाया उसने स्वयं को पा लिया यानी स्वयं को स्वयं में स्थित करना राम के लोक रंजक रूप को जानना है.
नाटककार शेखर सेन ने छत्तीसगढ़ को माता कौशल्या का मायका बताते हुए इसके नाते राम को अपना भांजा बताया तो राम के लोकरंजक रूप के भाव स्वत: प्रकट होने लगे. राम की व्याप्ति का उदाहरण देते हुए कहा जिस घर में रामायण है वहां कम से कम एक लड़का राम हो जाता है. राम ऐसे हैं कि पहला महाकाव्य लिखा जाता है तो वाल्मीकि रामायण की रचना करते हैं. यह महाकाव्य ही नहीं पहला नाटक भी है, जो इसी शैली में लिखा गया है और इसकी शुरुआत अयोध्या में अश्वमेध यज्ञ से होती है जहां लव और कुश राम का चरित्र गा रहे होते हैं. गोस्वामी ऐसे महाकाव्य की रचना करते हैं, जो 447 साल से हर साल नौ दिन तक मंचित होती है और हर दिन नई लगती है.