नई दिल्ली: यह एक पूरी शाम कवि-विचारक कुंवर नारायण के नाम थी. उनकी जयंती पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक कार्यक्रम में आयोजित हुआ, जिसमें वक्ताओं ने कहा कि कुंवर नारायण की कविता मनुष्यता का जयघोष करने वाली हैं. वे हमें द्वंद्व के क्षणों में रास्ता दिखाती हैं. दो सत्रों में आयोजित हुए इस कार्यक्रम के पहले सत्र ‘कविता और किताब‘ में सुदीप्ति, कुमार मंगलम, पंकज कुमार बोस, पूनम सिंह और जितेन्द्र रामप्रकाश ने कुंवर नारायण की अनेक कविताओं का पाठ किया, तो रंगकर्मी रमा यादव और उनके सहयोगियों ने कविता वाचन के साथ कुंवर जी की कविता ‘कमरे में धूप‘ का मंचन भी किया. इस सत्र में रेखा सेठी ने कहा, “एक कवि का जीवन जैसे पहले उसके भौतिक जीवन में होता है, वैसे ही उनके दूसरे जीवन में उसकी रचनाओं में होता है, ऐसा कुंवर जी कहा करते थे. कुंवर जी मेरे प्रिय कवि थे मैं उन्हें एकान्त में और सार्वजनिक जीवन में हमेशा पढ़ती हूं.” रमा यादव ने कहा कि जब हम कुंवर जी की कविताओं का पाठ और वाचन करते हैं तो जिंदगी के कई आयाम खुलते हैं. पूनम सिंह ने कहा कुंवर नारायण की कविताएं जीवन में एक समाधान के रूप में आती हैं. उनकी कविताएं मनुष्यता का जयघोष करने वाली हैं. याद रहे कि कुंवर नारायण की याद में उनके परिवार की ओर से तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया था. जिसमें दो दिन का कार्यक्रम ऑनलाइन हुआ. तीसरे दिन का कार्यक्रम राजकमल प्रकाशन समूह और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सहयोग से आयोजित किया गया.
इसी कार्यक्रम के दूसरे सत्र में राजकमल प्रकाशन से हाल ही में प्रकाशित कुंवर नारायण के साथ संवादों की किताब ‘जिए हुए से ज्यादा‘ पर परिचर्चा हुई. इस किताब में अनेक पत्रकारों-साहित्यकारों द्वारा लिए गए कुंवर नारायण के साक्षात्कार संकलित हैं. यह उनकी भेंट वार्ता की तीसरी किताब है. परिचर्चा के इस सत्र में प्रयाग शुक्ल, मृणाल पाण्डे, हरीश त्रिवेदी और अनामिका से रेखा सेठी ने बातचीत की. इस दौरान मृणाल पाण्डे ने कहा कि कुंवर नारायण की रचनाओं में पात्र एक काल से दूसरे काल में आते-जाते रहते हैं. जैसे समय की कोई सीमा न हो. उन्होंने अपनी रचनाओं में सीमाओं का स्पष्ट उल्लंघन किया है. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि कुंवर जी के गद्य की उपेक्षा हुई है. उसे कविताओं की तुलना में उतनी जगह नहीं मिली है. क्योंकि कविताएं सघन होती है, पढ़ने में आसान होती हैं. उनका गद्य बहुत भीगा हुआ है और बहुत देर तक उसका स्वाद लिया जा सकता है. इसके बाद उन्होंने कुंवर नारायण के कहानी संग्रह ‘बेचैन पत्तों का कोरस‘ से कुछ कहानियों का अंशपाठ भी किया. हरीश त्रिवेदी ने कहा, “उनकी कविताओं का कथ्य और शिल्प जितना सुविचारित लगता है, उतना किसी और कवि में नहीं दिखता. वे अपने चिंतन-मनन और स्वभाव से जहां पहुंच गए, वो हमारे लिए बहुत प्रेरणीय है.” कुंवर जी द्वारा अनूदित विश्व साहित्य पर उन्होंने कहा, “विश्व साहित्य के बारे में हमारी जो धारणाएं हैं, वे बहुत ही राष्ट्रीयतावादी और स्वार्थवादी हैं. विश्व साहित्य की चेतना को हिंदी साहित्य में लाने वाला कुंवर जी से बड़ा कोई दूसरा नहीं है.” कुंवर नारायण के दर्शन पर बात करते हुए अनामिका ने कहा कि अगर हम पेंडुलम की तरह देखें तो सुख-दुख हमेशा आते-जाते रहेंगे. वह स्थिर तभी होगा जब हम डोलना छोड़ देंगे. उन्होंने कहा कि संस्कृतियां जब लड़-लड़कर थक जाती हैं तो एक समय आता है जब वे गले मिलकर एक हो जाती हैं. कुंवर जी ने पाश्चात्य और पूर्वी संस्कृतियों के साथ जोड़कर हमारी संस्कृति को देखा. रेखा सेठी ने कहा कि कुंवर जी की यही खूबी है कि जब वे सभ्यताओं पर बात करते हैं तो कभी बिना प्रमाण के बात नहीं करते. वे उसके साथ पूरे प्रमाण भी देते हैं. बातचीत को आगे बढ़ाते हुए प्रयाग शुक्ल ने कहा, “कुंवर जी को आप हमेशा एक ही जगह से देख ही नहीं सकते हैं. उनकी दुनिया बहुत बड़ी है. हम उसे छू भी नहीं पाते हैं. वे एक साथ कितनी ही दिशाओं में चले जाते हैं.” उन्होंने कहा, “कविता के साथ-साथ कलाओं से भी उनको गहरा लगाव रहा है. कलाओं से उनका संबंध कितना गहरा था यह उनकी रचनाओं में झलकता है.” इसके बाद उन्होंने कुंवर जी के साथ अपने संस्मरण सुनाए. अंत में कुंवर नारायण के पुत्र अपूर्व नारायण ने सबका आभार व्यक्त किया.