इंदौरः देश के प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी और प्रबंधन संस्थानों में शुमार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान इंदौर और भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए अनूठे काम कर रहा है. यह संस्थान अपने छात्रों और प्रवक्ताओं के लिए हर दिन हिंदी का एक नया शब्द जारी कर रहा है और उसके विभिन्न अर्थों की जानकारी दे रहा है. संस्थान ने हिंदी में कार्य करने की शैली को बढ़ावा देने के लिए हिंदी शब्दावली भी जारी की है. इसमें पाठ्यक्रमों में शामिल अंग्रेजी के कठिन शब्दों को हिंदी में दिया गया है. संस्थान ने अपने अधिकारिक पोर्टल के मुख्य पेज पर आज का शब्द नाम से विकल्प बना रखा है. इसमें रोजमर्रा बोले और लिखे जाने वाले हिंदी के शब्दों को जारी किया जाता है. हिंदी के साथ संस्कृत को भी बढ़ावा देने के लिए आईआईटी काम कर रहा है. संस्थान ने हाल ही में संस्कृत विषय में लघु पाठ्यक्रम भी कराया था. संस्थान प्रशासनिक पत्र और विज्ञापन में हिंदी के उपयोग से आगे बढ़ते हुए कार्यशाला भी हिंदी भाषा में करा रहा है.
संस्थान के कार्यवाहक निदेशक प्रो नीलेश कुमार जैन का कहना है कि जहां ज्यादातर हिंदी को जानने वाले मौजूद हो वहां हिंदी में ही बात करने पर जोर देना चाहिए. कई विज्ञान और तकनीक के सामान्य विषयों की जानकारी हम हिंदी में देने पर जोर देते हैं. ऐसी ही कोशिश भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान इंदौर भी कर रहा है. संस्थान ने अपने अधिकारिक पोर्टल को अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी जारी किया है. संस्थान प्रशासनिक पत्रों के साथ ही प्रेस विज्ञप्ति हिंदी में जारी करता है. संस्थान के निदेशक प्रोफेसर हिमांशु राय भी ज्यादातर कार्यक्रमों में अपना वक्तव्य हिंदी और संस्कृत में देने पर जोर देते हैं. उनका कहना है कि हिंदी मन की भाषा है. शहरों से लेकर गांवों तक हिंदी भाषा को समझा जाता है, इसलिए शिक्षण संस्थानों को इसे बढ़ावा देने की कोशिश जारी रखनी चाहिए. शहर में स्थित राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र में भी ज्यादातर काम हिंदी में ही किए जा रहे हैं और तकनीकी विषय आम लोगों को आसानी से समझ आ सके इसके लिए हिंदी में भी सूचनाएं जारी की जा रही है. देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में भी ज्यादातर काम हिंदी में किया जाता है और यहां भाषा अध्ययनशाला नाम से विभाग भी हैं जहां हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
(दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन नई दुनिया के संवाददाता गजेंद्र विश्वकर्मा की रिपोर्ट पर आधारित)