जयपुर: समाज में जिस रूप में विसंगतियां बढ़ रही है उसमें आलोचक समाज की जरूरत है. व्यंग्यकार को एक चिंतक होने के साथ आत्मविश्लेषक भी होना चाहिए. जो 63 का आंकड़ा रखेगा वह व्यंग्यकार नहीं हो सकता. छत्तीस का आंकड़ा व्यवस्था के विरोध का प्रतीक है. छत्तीस का आंकड़ा व्यंग्य की सही पहचान रखने वाले व्यंग्यकार के व्यक्तित्व को सामने लाता है. यह कहना है प्रतिष्ठित व्यंग्यकार एवं व्यंग्य यात्रा के संपादक डॉ प्रेम जनमेजय का. वे साहित्यिक संस्था कलमकार मंच की ओर से डॉ राधाकृष्णन पुस्तकालय एवं आलोकपर्व प्रकाशन के सहयोग से आयोजित व्यंग्य संग्रह '36 का आंकड़ा' के लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे. यह व्यंग्यकार लालित्य ललित द्वरा सम्पादित संकलन है. कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि जनमेजय ने कहा कि व्यंग्य को साहित्य की विधा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए व्यंग्य यात्रा और देश भर में व्यंग्य शिविरों के आयोजन से नई जमीन तैयार हुई है और नई पीढ़ी सामने आई है. व्यंग्यकारों को अपनी ऊर्जा सही दिशा में लगानी चाहिए. किसी की कार्बन कापी बनकर व्यंग्यकार अपनी पहचान नहीं बना सकता. ऐसे आयोजन व्यंग्य को अमृतत्व प्रदान करते हैं. इस अवसर पर कलमकार मंच के राष्ट्रीय संयोजक निशांत मिश्रा ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए संस्था की भावी योजनाओं और आगामी माह प्रकाशित होने वाली पुस्तकों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि सभी विधाओं की तरह व्यंग्य विधा भी महत्त्वपूर्ण है जिसके जरिए लेखक समाज, राजनीति और सत्ता में व्याप्त विसंगतियों को बेहतर तरीके से उकेर सकता है.
समारोह की अध्यक्षता करते हुए व्यंग्यकार, कवि और मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी फारूक आफरीदी ने कहा कि सामाजिक विद्रूपताएं व्यंग्य की जननी हैं. व्यंग्यकार को समाज के व्यापक हित में अपनी कलम के माध्यम से आज के कबीर यानी एक्टिविस्ट की भूमिका निभानी होगी. व्यंग्यकार निहित स्वार्थों के लिए चाटुकारिता करेगा तो अपनी साख खो देगा. प्रमुख वक्ता के रूप में पत्रकार एवं समीक्षक डॉ यश गोयल ने अपनी बात रखी. संग्रह की विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि देशभर में ऐसी परिस्थितियां बनी हुई हैं, जिनसे हर जगह 36 का आंकड़ा नजर आता है और यही परिस्थितियां व्यंग्य उत्पादन का केंद्र बनाती हैं. उन्होंने कहा कि वर्तमान में व्यंग्य का स्वरूप बदलता जा रहा है, जो अपने आप में एक चुनौती है. लालित्य ललित ने पुस्तक के लिए चयनित 36 व्यंग्यकारों की रचनाओं के चयन और संपादन की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि प्रतिदिन लिखना और नये-नये पर लिखना बहुत ही कठिन है, इसके बाद भी व्यंग्य में बहुत से लेखक शिद्दत से लिख रहे हैं. युवा व्यंग्यकार और कवि रणविजय राव ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि अधिकतर व्यंग्य सत्ता के विरोध में या असामान्य घटनाओं अथवा जनमानस से प्रेरित होकर लिखे जाते हैं. देखा जाए तो व्यंग्य एक तरह से जनमानस को जगाने का कार्य करता है. प्रकाशक रामगोपाल शर्मा ने कहा कि लालित्य ललित ने इस संग्रह से व्यंग्य में नए प्रतिमान बनाए हैं. डॉ राधाकृष्णन पुस्तकालय की अधीक्षक रेखा यादव ने सभी अतिथियों एवं आगुंतकों का आभार व्यक्त किया.