डॉ कुँअर बेचैन हिंदी ग़ज़ल और गीत के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं. देश, समाज और मानवता से जुड़ी हर छोटी- बड़ी घटना पर उनकी पैनी नजर होती है. उन्होंने साहित्य की कई विधाओं में सृजन किया. कविताएं, ग़ज़ल, गीत और उपन्यास भी लिखे. पर उनकी व्यापक पहचान एक शायर व गीतकार के रूप में ही है. वह आज के दौर के बड़े गीतकारों और शायरों में शुमार किए जाते हैं. उनका असली नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना है. 'बेचैन' उनका तख़ल्लुस है.  पुलवामा में मारे गए वीर शहीदों को नमन करते हुए डा. कुंअर बेचैन की यह श्रद्धांजलि रचनाः

श्रद्धांजलि –

सीमा के सेनानी को
गंग-जमुन के पानी को
हर सैनिक बलिदानी को
मेरा सौ-सौ बार नमन
सबका सौ-सौ बार नमन ..

मलकर धूल बदन पर इस धरती की, जो कि जवान हुए
दुश्मन ने ललकारा तो, उनको आँधी-तूफ़ान हुए
भारत माँ के आँसू पौंछे, होंठों की मुस्कान हुए
हम सब की रक्षा की खातिर, सीमा पर कुर्बान हुए

उन सबकी कुर्बानी को
उनकी अमर कहानी को
मेरा सौ-सौ बार नमन
सबका सौ-सौ बार नमन.

बहिना बोली- 'भैया, मेरी राखी के त्यौहार थे तुम'
बापू का कंधा, माँ की गोदी बोली- 'उपहार थे तुम'
पत्नी बोली- 'प्रियवर, मेरा सिंदूरी श्रृंगार थे तुम'
बेटी बोली, बेटा बोला- 'जीवन के आधार थे तुम'

ऐसे स्वर अभिमानी को
हर ऊँची पेशानी को
मेरा सौ-सौ बार नमन
सबका सौ-सौ बार नमन.

बाँध सब्र का टूट गया है, अब हम प्रलय मचायेंगे
दुश्मन की छाती पर चढ़कर, उसको सबक सिखायेंगे
जिन हाथों ने फूल दिये थे, वे हथियार उठायेंगे
हर आतंकी खेमे पर हम, सिर्फ मौत बरसायेंगे

इस संकल्पी बानी को
इस गुस्से तूफानी को
मेरा सौ-सौ बार नमन
सबका सौ-सौ बार नमन .