स्वामी सहजानन्द सरस्वती एक समाज सुधारक संत के साथ एक बड़े लेखक भी थे. उनका जन्म उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव में 22 फरवरी 1889 को महाशिवरात्रि के दिन हुआ था. संन्यास ग्रहण करने के बावजूद किसानों की दुर्दशा देखकर उन्होंने बिहार में एक असरदार किसान आंदोलन शुरू किया. उन्होंने जगह-जगह घूमकर अंग्रेजी राज के खिलाफ लोगों को खड़ा किया. उनकी बढ़ती लोकप्रियता और सामाजिक सक्रियता से घबरा कर अंग्रेजों ने उन्हें कारागार में डाल दिया. सन 1934 में जब बिहार प्रलयंकारी भूकंप से तबाह हुआ, तब स्वामी जी ने बढ़-चढ़कर राहत और पुनर्वास के काम में भाग लिया. इससे उनकी प्रसिद्धि खूब बढ़ी. इससे उत्साहित होकर स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसानों को हक दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष को ही अपने जीवन का दीर्घकालिक लक्ष्य घोषित कर दिया. तब उन्होंने एक यादगार नारा दिया- 'कैसे लोगे मालगुजारी, लठ हमारा जिन्दाबाद.' कहते हैं कि बाद में उनका यही नारा देशव्यापी किसान आंदोलन का सबसे प्रिय नारा बन गया.
स्वामी सहजानंद सरस्वती संघर्ष के साथ ही सृजन के भी प्रतीक पुरूष थे. उन्होंने आंदोलनों और अध्यात्म में भाग लेने के बीच अपनी अति व्यस्त दिनचर्या के बावजूद दो दर्जन से ज्यादा अविस्मरणीय पुस्तकों की रचना की. एक तरफ सामाजिक व्यवस्था पर उन्होंने 'भूमिहार ब्राह्मण परिचय', 'झूठा भय मिथ्या अभिमान', 'ब्राह्मण कौन', 'ब्राह्मण समाज की स्थिति' जैसी कालजयी पुस्तकें हिन्दी में लिखी, तो दूसरी ओर 'ब्रह्मर्षि वंश विस्तर' और 'कर्मकलाप' नामक दो ग्रंथों का प्रणयन संस्कृत और हिंदी में किया. उनकी आत्मकथा 'मेरा जीवन संघर्ष' के नाम से प्रकाशित है. 'आजादी की लड़ाई और किसान आंदोलन के संघर्षों की दास्तान', उनकी 'किसान सभा के संस्मरण', 'महारुद्र का महातांडव, जंग और राष्ट्रीय आजादी', 'अब क्या हो', 'गया जिले में सवा मास' आदि पुस्तके चर्चित हैं. उन्होंने 'गीता ह्रदय' नामक भाष्य भी लिखा. किसानों को शोषण मुक्त करने और जमींदारी प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए स्वामी जी 26 जून, 1950 को महाप्रयाण कर गए. उनकी याद को नमन!